SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञान-ज्ञेय मीमांसा- जैनदर्शन का वैशिष्ट्य : 9 बनते व बिगड़ते रहते हैं, किन्तु दर्पण प्रत्येक परिवर्तन में अप्रभावित रहता है साथ ही उन आकार-प्रकारों से दर्पण की स्वच्छता को आंच नहीं आती है। उदाहरणार्थ- दर्पण में अग्नि प्रतिबिम्बित होती है किन्तु अग्नि के प्रतिबिम्ब से न तो दर्पण गर्म होता है और न ही टूटता है क्योंकि दर्पण में जो अग्नि दिखाई देती है वह दर्पण की स्वच्छता के कारण प्रतिबिम्बित होती है अथवा दर्पण के अपने प्रकाशत्व स्वभाव के कारण दिखाई देती है। दर्पण में प्रतिबिम्बित अग्नि की रचना के नियामक उपादान दर्पण के अपने स्वतंत्र हैं। वस्तुतः दर्पण के स्वच्छ स्वभाव में यदि अग्न्याकार परिणमन की शक्ति की योग्यता न हो तो सारा विश्व मिलकर भी उसे अग्न्याकार नहीं कर सकता और यदि स्वयं दर्पण में अग्न्याकार होने की शक्ति व योग्यता है तो फिर उसे अग्नि की क्या अपेक्षा है।' 'उक्तं च 'जो शक्तिशून्य है उसे शक्ति नहीं दी जा सकती और जो शक्तिमय है उसे अपनी शक्ति के प्रयोग में किसी की अपेक्षा नहीं होती। यदि दर्पण में प्रतिबिम्बित अग्नि का कारण बाह्य अग्नि है तो पाषाण में भी अग्नि प्रतिबिम्बित होनी चाहिए, किन्तु ऐसा नहीं होता। अग्नि की रचना की सम्पूर्ण सामग्री दर्पण के अपने अक्षय कोश में ही पड़ी है उसे किसी से कुछ उधार नहीं लेना पड़ता। यह ज्ञान का अपना अद्भुत स्व-पर प्रकाशक सामर्थ्य है जिसके कारण जो बाह्य ज्ञेय ज्ञान में प्रतिबिम्बित होता है वह स्वयं उसके प्रकाशत्व सामर्थ्य के कारण प्रतिबिम्बित होता है ज्ञेय के कारण नहीं। जैसे-सूर्य जगत् को प्रकाशित अथवा स्वयं को प्रकाशित करे दोनों अवस्थाओं में वह प्रकाशमय ही है और दोनों अवस्थायें एक साथ ही हैं, उसी प्रकार ज्ञान भी स्व व पर प्रकाशक है तथा दोनों अवस्थाएँ ज्ञान ही हैं। ज्ञेय का स्वरूप - जिस प्रकार ज्ञान (पर की अपेक्षा से रहित) निरपेक्ष होकर वस्तु का अवलोकन करता है, उसी प्रकार ज्ञेय भी (जिसमें जड़ व चेतन समस्त वस्तुयें सम्मिलित हैं) अपने में निहित प्रमेयत्व गुण की शक्ति के कारण अर्थात् ज्ञान का ज्ञेय बनने के सामर्थ्य के कारण सहज ही ज्ञान का विषय बन जाता है। अतः ज्ञेय स्वयं अपनी शक्ति सामर्थ्य के कारण ज्ञान का विषय बनता है उसे अपने का अवलोकन कराने (जनाने) के लिए ज्ञान की आवश्यकता नहीं। इस प्रकार जड़ ज्ञेय वस्तुयें भी अपनी प्रमेयत्व शक्ति की धारक होने के कारण सहज ही ज्ञान का विषय बनती हैं। अतः अचेतन वस्तुयें भी पूर्ण स्वाधीन एवं स्वतंत्र हैं। जड़ वस्तु में ज्ञान में झलकने का सामर्थ्य है और ज्ञान में उन्हें झलकाने का स्वतंत्र सामर्थ्य है। ऐसी वस्तु की अपनी अद्भुत व स्वतंत्र व्यवस्था है।
SR No.525082
Book TitleSramana 2012 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy