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________________ ज्ञान-ज्ञेय मीमांसा - जैनदर्शन का वैशिष्ट्य डॉ. अल्पना जैन जैनदर्शन के अनुसार ज्ञान एवं ज्ञेय दोनों अपने-अपने स्वरूप में परिपूर्ण होने के कारण निरपेक्ष हैं। ज्ञान स्वयं के साथ-साथ पर को भी प्रकाशित करता है। इस सन्दर्भ में प्रमा (यथार्थ ज्ञान) की व्याख्या करते हुए जैनदर्शन यह मानता है कि वस्तुमात्र में प्रमेयत्व नामक एक सामान्य गुण होता है जिसके कारण वह प्रमा का विषय बनती है। यदि इसमें यह सामान्य गुण न हो तो कथमपि उसका ज्ञान सम्भव नहीं है। ज्ञान सत्, सहेतुक, निरपेक्ष और स्वतन्त्र सत्ता वाला होता है। उसकी सत्ता ज्ञेयों के अधीन नहीं है। जैनदर्शन की इसी विशिष्ट प्रस्तुति अर्थात् वस्तु की अस्तित्वात्मक, क्रियात्मक एवं ज्ञानात्मक स्वतंत्रता को लेखक ने अपने लेख में व्याख्यायित करने का प्रयास किया है। -सम्पादक जैनदर्शन में मान्य ज्ञान-ज्ञेय मीमांसा विश्व में विद्यमान जड़ चेतनात्मक पदार्थों की स्वतंत्रता को अपने नूतन स्वरूप में प्रस्तुत करती है। सामान्यतः दार्शनिक चिंतन में यह माना जाता है कि कोई भी वस्तु पूर्ण अथवा चरम स्वतंत्रता तभी प्राप्त करती है जब उसमें अस्तित्वात्मक, क्रियात्मक व ज्ञानात्मक स्वतंत्रता हो। अस्तित्वात्मक व क्रियात्मक स्वतंत्रता प्रायः समस्त जड़-चेतन वस्तुओं में स्वीकार कर ली जाती है, किन्तु जब ज्ञानात्मक स्वतंत्रता की बात उठती है तो वह केवल चेतन जगत् तक ही सीमित रह जाती है। दार्शनिक जगत् में ज्ञानात्मक स्वतंत्रता वैसी सत्ता पर लागू की जा सकती है जो स्वयं प्रकाश अथवा स्वसंवेद्य हो। इस दृष्टि से संसार की वस्तुओं को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहले वर्ग में जड़ पदार्थ जो अपने ज्ञान के लिए ज्ञाता पर निर्भर करते हैं, दूसरे वर्ग में चेतन पदार्थ जो दूसरे को जानने के साथ-साथ स्वयं के ज्ञान से भी युक्त होते हैं; एवं तीसरा वर्ग स्वयं प्रकाश तत्त्व का हो सकता है, उदाहरणार्थ- अद्वैत वेदान्त में आत्मा और बौद्ध दर्शन में विज्ञान ऐसा ही तत्त्व है। अब यदि जैनदर्शन की दृष्टि से ज्ञानात्मक स्वतंत्रता पर विचार किया जाये तो चेतन द्रव्यों को तो ज्ञानात्मक स्वतंत्रता प्रदान की जा सकती है, क्योंकि उन्हें स्व-पर प्रकाशक माना गया है, फिर भी जड़ वस्तुओं में ऐसी स्वतंत्रता संभव नहीं दिखाई देती है, परन्तु जैनदर्शन की यहाँ एक अपूर्व विशिष्टता दृष्टिगोचर होती है वह यह है कि वह वस्तुमात्र में 'प्रमेयत्व' नामक सामान्य गुण की सत्ता को स्वीकार करता है।' प्रमेयत्व गुण के कारण ही अचेतन वस्तुओं में भी ज्ञानात्मक स्वतंत्रता निहित हो जाती है। वह इस प्रकार है कि अचेतन वस्तुयें यद्यपि स्वयं प्रकाशमान नहीं होती
SR No.525082
Book TitleSramana 2012 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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