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12 : श्रमण. वर्ष 63, अंक 2 / अप्रैल-जून 2012 की अशद्धियों की भरमार तो समान्य हैं। यह निर्विवाद है कि जैन परम्परा में अर्थ की प्रधानता. भाषा पर क्षेत्रीयता का प्रभाव और लेहिया की अज्ञानता, कई वर्णों की लिपि में सादृश्य आदि इन पाठान्तरों के प्रमुख कारण रहे हैं।
सन्दर्भ सूची 1. अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं।
सासणस्स हियट्ठाए, तओ सुत्तं तित्थं पवत्तइ।। 92।। -आवश्यकनियुक्ति, आचार्य भद्रबाहु, नियुक्तिसंग्रह. हर्पपुष्पामृत जैन ग्रन्थ माला 189, लाखाबावल- शांतिपुरी 1989, पृ.10. 2. डा. विजय शंकर शुक्ल, विभागाध्यक्ष, कलाकोश विभाग. इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र. नई दिल्ली द्वारा व्याख्यान में प्रदत्त सूचना। 3. ठाणंगसुत्तं समवायंगसुत्तं च, सं. मुनि जम्बूविजय, जैन आगमग्रन्थमाला 3. महावीर जैन विद्यालय,मुम्बई 36.1985. प्रस्ता. पृ.37.38,39. 4. वही. पृ. 337. 5. वही, पृ. 370. 6. वही. पृ. 37. 7. वही, पृ. 385 8. वही,पृ. 436, 9. वही, पृ. 327. 10.वही, पृ. 327, 11.वही पृ. 329. 12. वही, पृ. 332, 13.वही, पृ. 332. 14.वही, पृ. 353, 15. वही, पृ. 360 16.वही, पृ. 417, 17.वही, पृ. 435 18. वही. पृ. 425 19.वही, पृ. 425. 20.वही. पृ.431 21. वही. पृ. 360, 22.वही, पृ. 441. 23.वही, पृ.335 24.वही, पृ. 363. 25.वही,पृ. 333. 26. वही.पृ.335 27.वही, पृ.331. 28.वही पृ.329. 29वही.पृ.376 30.वही. पृ.410 31.अतः सेझै: अध्याय 8.पाद 3,सूत्र2. सिद्धहेमशब्दानुशासन ,प्राकृतव्याकरण, व्याख्या.पू. ज्ञानमुनि, आचार्य श्री आत्माराम जैन माडल स्कूल, देहली, 1974, 32.समवायंगसुत्तं ,पूर्वोक्त पृ. 32733. वही,पृ. 328 34.वही, पृ.328 35.वही,पृ.332, 36. वही,पृ. 394, 37.वही,पृ.415. 38.वही,पृ. 414 39. वही.पृ. 431 40.वही,पृ.406 41.वही. पृ. 468 42. वही. पृ. 470 43.वही. पृ. 345 44.वही, पृ. 353 45. वही. पृ. 367 46.वही. पृ. 368 47. वही, पृ. 382 48. वही,पृ. 382. 49.वही. पृ. 446. 50 .वही पृ.466 51. वही, पृ.326, 52. वही .पृ.398.