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________________ 10 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 2 / अप्रैल - जून 2012 धम्मझाणे - धम्मे झाणे, सुक्कझाणे - सुक्के झाणे || हत्थनक्षत्ते - हत्थे नक्षत्ते 142 141 जीवपोग्गलात्थिकाए - जीवात्थिकाए पोग्गलात्थिकाए 43 नो इत्थीकहा- णो इत्थीणं कहा 44 23. विभक्ति में अन्तर संसत्ताणं सेज्जासणाण ( षष्ठी) - संसत्ताणि सेज्जासणाणि ( द्वितीया ) 14 145 146 अद्धमासेहिं (तृतीया) - अद्धमासाणं (षष्ठी) " 24. समूहवाचकसंज्ञाओं का प्रयोग- कभी-कभी किसी पाण्डुलिपि में मात्र व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग किया गया है तो कुछ में व्यक्तिवाचक के साथ जातिवाचक संज्ञा का भी प्रयोग होने से पाठभेद दिखाई पड़ता हैजम्बूद्दीवे (व्यक्तिवाचक) - जम्बूद्दीवे दीवे (जातिवाचक) 147 भवसिद्धिया (व्यक्तिवाचक) भवसिद्धिया जीवा ( जातिवाचक ) 148 मोहणिज्जस्स- मोहणिज्जस्स कम्मस्स 149 तणपरीसहे- तणफास परीसहे 150 25. अर्थ- परिवर्तन- पाण्डुलिपियों में लिपिकर्त्ता द्वारा असावधानीवश 'अ' जोड़ दिये जाने से अर्थपरिवर्तन जैसा महत्त्वपूर्ण पाठभेद दृष्टिगत होता हैनियट्टिबायरे (निवृत्तिबादर) - अनियट्टिबायरे ( अनिवृत्तिबादर ) 151 णाणपरिसह - अण्णाणपरिसह 15: पच्चक्खाणकिरिया-अपच्चक्खाणकिरिया 52 26. वर्तनी (spelling) में त्रुटि के कारण पाठ-भेद- कहीं-कहीं भूलवश मात्र ह्रस्व के बदले दीर्घ और दीर्घ के बदले ह्रस्व स्वरों के प्रयोग से भी पाठ - भेद दिखाई पड़ता है सिंधुओ - सिंधूओ' 3 पवाहे - पवहे 54 " रत्ता-रत्तवतीओ(रक्ता और रक्तवती नदियां ) - रत्त॒रत्तवतीओ' 55 पडंति (पतंति ) - पवडंति 156 आहत्तहिए(याथातथ्य ) - आधत्तधिए खं, ला1, अहात्तधिए खं, अधत्तधिए जे., अधित्तधेए 57 27. प्राकृत में इकारान्त उकारान्त में स्त्रीलिंग और पुलिंग में प्रथमा विभक्ति एकवचन में ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ हो जाता है- अक्लीबे सौ इस कारण भी पाठ-भेद दिखाई पड़ता है। जैसे समिति - समिती 159 कित्ति - कित्ती 160
SR No.525080
Book TitleSramana 2012 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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