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________________ जिज्ञासा और समाधान : 77 11. श्रमणभूत प्रतिमा- साधक अपने को श्रमण जैसा बना लेता है। श्रमण जैसी वेशभूषा, पात्र तथा उपकरण रखता है। सहिष्णुता होने पर केशलुंचन करता है। भिक्षाचर्या से जीवन-यापन करता है। श्रमण किसी के भी घर भिक्षाचर्या हेतु जाता है जबकि श्रमणभूत प्रतिमा वाला प्रायः अपने सम्बन्धियों के घरों में जाता है। इसका काल एक दिन से लेकर ग्यारह मास है। दिगम्बर परम्परा में इसका नाम उद्दिष्टत्याग प्रतिमा है। अपने उद्देश्य से बनाये गए आहार आदि को नहीं लेता। निमंत्रण स्वीकार नहीं करता। बालों को कैंची या छुरे से बनाता है। इसके दो भेद हैं- 1. क्षुल्लक- यह एक लंगोटी और एक सफेद चादर रखता है। कई घरों से या एक घर से पात्र में भिक्षा लेता है। जूठे बर्तन स्वयं धोता है। मुनियों के साथ रहकर उनकी वैयावृत्ति करता है। 2. ऐलक- केशलोंच करता है। केवल एक लंगोटी होती है। मयूरपंख की पीछी रखता है। मुनिवत् आहार हाथ में लेकर करता है। श्रमण (भिक्षु) की बारह प्रतिमाएँ श्रावक की प्रतिमाओं की तरह श्रमण (भिक्षु) की भी विशिष्ट-साधना-भूमिका रूप बारह प्रतिमाएँ हैं। इन प्रतिमाओं अथवा प्रतिमायोग की साधना में श्रमण मन-वचन-काय तीनों योगों को नियंत्रित करता है। प्रथम सात प्रतिमाएँ विशेषरूप से आहार-नियमन से सम्बन्धित हैं और बाद की पाँच प्रतिमाएँ आसन-विशेषरूप-कायोत्सर्ग से सम्बन्धित हैं। इनका विशेष विवरण निम्न प्रकार श्वेताम्बर मान्यता 1. मासिकी- इस प्रतिमा को धारण करने वाला श्रमण एक मास तक प्रतिदिन एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति जल की ग्रहण करता है। एक दत्ति का अर्थ है एक अखण्ड धारा के रूप में जो आहार या जल साधु के पात्र में दाता श्रावक देता है, उतना ही लेकर संतोष करना। विशिष्ट नियम (अभिग्रह) लेकर (जैसे दाता का एक पैर देहली के बाहर हो) दिन में एक बार ही भिक्षार्थ जाता है। यदि विधि के अनुकूल आहार नहीं मिलता तो उपवास करता है। गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली स्त्रियों के लिए निर्मित आहार नहीं लेता। समागत सभी कष्टों को समताभाव से सहन करता है। उपसर्ग करने वाले पर द्वेष न करके उसे अपना उपकारी समझकर कर्म-निर्जरा करता है। एक गाँव में दो रात्रि से अधिक नहीं ठहरता और सूर्यास्त होने पर जैसा भी स्थान होता है रुक जाता है। 2. द्विमासिकी- दो मास तक दिन में दो दत्ति अन्न की और दो दत्ति जल की लेता है। शेष प्रथम प्रतिमावत् है। यद्यपि यहाँ दो दत्तियाँ आहार की मिल रही
SR No.525079
Book TitleSramana 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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