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________________ जिज्ञासा और समाधान : 75 श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ 1. दर्शन प्रतिमा- यहाँ दर्शन शब्द का अर्थ है 'सम्यक् श्रद्धा'। अतः शंका आदि दोषों से रहित जिनवचन में दृढ़ आस्था (प्रगाढ़ श्रद्धा) रखना । क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि इस प्रतिमा को धारण करता है। वह अपने अणुव्रतों का निरतिचार पालन करता है। न्यायपूर्वक आजीविका चलाता है। चर्मपात्र में रखे घी, तेल आदि का उपयोग नहीं करता है। संकल्पी हिंसा नहीं करता है। अपने र-विचार को शुद्ध रखता है। प्रलोभनों से विचलित नहीं होता है। श्वेताम्बरों में इसकी आराधना का काल एक मास है । आचार 2. व्रत प्रतिमा- पाँच अणुव्रतों और सात शीलव्रतों (3 गुणव्रतों और 4 शिक्षाव्रतों) का जिन्हें पाक्षिक श्रावक पालन करता था उनका दृढ़तापूर्वक निरतिचार पालन करना व्रत प्रतिमा है। यहाँ वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत को अभ्यासरूप में करता है। अनुकम्पागुण से युक्त होता है। किसी के बारे में अनिष्ट नहीं सोचता । श्वेताम्बरों में इसका आराधनाकाल दो मास है । 3. सामायिक प्रतिमा- प्रतिदिन नियम से तीन बार सामायिक (मन-वचन-काय की एकाग्रता) करना। इसमें वह सामायिक और देशावकाशिक ( देशव्रत) का भी निरतिचार पालन करता है। पोषधोपवास को अभ्यासरूप में करता है। श्वेताम्बरों में इसका आराधना काल तीन मास है। 4. पोषध प्रतिमा- अष्टमी, चतुर्दशी तथा पर्व - तिथियों में पोषध (उपवास) व्रत का नियमतः पालन करना पोषध प्रतिमा है। पूर्णिमा, अमावस्या आदि विशिष्ट तिथियों में भी यथाशक्य पोषध करना चाहिए। श्वेताम्बरों में इसका आराधनाकाल चार मास है। 5. नियम या कायोत्सर्ग प्रतिमा- शरीर के साथ ममत्व छोड़कर आत्मचिन्तन में लगना कायोत्सर्ग (ध्यान) है। अष्टमी तथा चतुर्दशी को रात-दिन का कायोत्सर्ग करना। इसे नियम प्रतिमा भी कहते हैं क्योंकि इसमें पाँच नियमों का पालन करना होता है- 1. स्नान न करना, 2. रात्रिभोजन त्याग, 3. धोती की लांग न लगाना, 4. दिन में ब्रह्मचर्य और रात्रि में मर्यादा और 5 माह में एक रात्रि कायोत्सर्ग। श्वेताम्बरों में इसका आराधनाकाल 1 दिन, 2 दिन, 3 दिन, से लेकर पाँच मास तक है। दिगम्बर परम्परा में इसके स्थान पर रात्रिभोजनत्याग और दिवा-मैथुनविरत नाम मिलते हैं। 6. ब्रह्मचर्य प्रतिमा - पूर्णरूपेण काम - चेष्टाओं से विरक्ति ब्रह्मचर्य प्रतिमा है ।। स्त्रियों / पुरुषों से अनावश्यक मेल-जोल, श्रृंगारिक चेष्टाओं का अवलोकन, कामवर्धक संगीत श्रवण आदि वर्जित है। स्वयं भी श्रृंगारिक वेश-१ - भूषा धारण
SR No.525079
Book TitleSramana 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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