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________________ जिज्ञासा और समाधान जिज्ञासा- उपासक (श्रावक या गृहस्थ) की ग्यारह और श्रमण (मुनि या भिक्षु या साधु या अनगार) की बारह प्रतिमाओं का उल्लेख जैन आगमों में मिलता है। इन्हें समझाने का कष्ट करें। श्रीमती सोना जैन समाधान- उपासक और श्रमण दोनों की प्रतिमाओं का उल्लेख हमें श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में मिलता है।' 'प्रतिमा' शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त है- प्रतिज्ञा-विशेष, व्रत-विशेष, अभिग्रह-विशेष, मूर्ति, प्रतिकृति, बिम्ब, प्रतिबिम्ब, छाया, प्रतिच्छाया आदि। प्रस्तुत प्रसंग में 'प्रतिमा' शब्द तप-विशेष या वीतरागता-वर्धक-साधना पद्धति की भूमिकाओं (सोपानों) के अर्थ में लेना चाहिए। इन्हें प्रतिमा-योगसाधना भी कह सकते हैं। प्रतिमाधारी उपासक (गृहस्थ या सागार या श्रावक) श्रमणसदृश या श्रमण-जीवन की प्रतिकृति रूप हो जाता है। दिगम्बर परम्परा में परवर्ती प्रतिमाओं में स्थित श्रावक को पूर्ववर्ती प्रतिमाओं का पालन करना आवश्यक है परन्तु श्वेताम्बर परम्परा में समयसीमा का निर्धारण होने से जीवनपर्यन्त धारण करना आवश्यक है, ऐसा प्रतीत नहीं होता है। श्रमण की प्रतिमाएँ तप-विशेष हैं जिन्हें क्रमशः किया जाता है। उपासक (श्रावक) प्रतिमाएँ- श्रावक के तीन प्रकार बतलाये गए हैं जो उत्तरोत्तर उत्कृष्ट हैं- 1. पाक्षिक (प्रारम्भिक अवस्था वाला), 2. नैष्ठिक (प्रतिमाधारक) और 3. साधक (समाधिमरणधारी)। पाक्षिक श्रावक- पाक्षिक श्रावक वह है जो पाँच अणुव्रतों (स्थूल अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का पालन करता है। मद्य, मांस और मधु (शहद) का सेवन नहीं करता है। जुआ, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन, शिकार आदि से भी दूर रहता है। पीपल, वट, पिलखन, गूलर और काक- इन पाँच क्षीरी फलों या उदुम्बर फलों (जन्तुफल या हेमदुग्धक) का भी सेवन नहीं करता है। जिन वृक्षों से दूध जैसे पीले रंग का पदार्थ निकलता है वे क्षीरीफल कहे जाते हैं। इसमें त्रसजीवों की सत्ता नग्न आँखों से देखी जा सकती है। उपासक त्रस-हिंसात्यागी होता है। रात्रिभोजन न करना, छना पानी पीना, गुरुसेवा करना, सुपात्रों को दान देना आदि कार्य पाक्षिक श्रावक के लक्षण हैं। पाक्षिक श्रावक नैष्ठिक श्रावक बनने की तैयारी में होता है। यह पाँच अणुव्रतों के साथ सात शीलों का भी पालन करता है। सात शील (3 गुणव्रत तथा 4 शिक्षाव्रत) हैंदिग्व्रत, देशावकाशिक (देशव्रत), अनर्थदण्ड-विरत, सामायिक,
SR No.525079
Book TitleSramana 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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