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भेदविज्ञान द्वारा श्रावक-लोभसंवरण : 25 7. लाटीसंहिता, पं. राजमल्ल कवि, माणेकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, मुम्बई 1927, 2.1 8. ललितविस्तरा, हरिभद्रसूरि, जैनपुस्तकोद्धार संस्था, मुम्बई, 1915, पृ. 16 १. बोधपाहुड, आचार्य कुन्दकुन्द, प्र. सम्पा. धर्मचन्द शास्त्री, भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद्, पुष्प सं 10, 1995, गाथा 25, 10. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, स्वामि कार्तिकेय, सम्पा. डा. आ. नेमि. उपाध्याय,श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम,अगास, 1960, 97, 11. धर्मो नाम कृपामूलः सा तु जीवानुकम्पनम् । अशरण्यशरण्यत्वमतो धार्मिकलक्षणम्।। लम्ब5, सूत्र 35, क्षत्रचूडामणि, वादीभसिंह, अनु. एवं सम्पा. ब्र. यशपाल जैन, अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद् ट्रस्ट,जयपुर 2001, 12. जम्बूस्वामिचरित, पं. राजमल्ल, मानेकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, मुम्बई 1927, 12. 3.151 13. प्रश्नव्याकरणसूत्र, सम्पा. पं. अमरमुनि जी महा., सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा 1973, छठां अध्ययन, अहिंसा संवर, पृ. 517-520, 14. दाणं पूजा मुक्खं सावयधम्मे ण सावया तेण विणा। झाणाज्झयणं मुक्खं जइधम्मे तं विणा तहा सोवि-गाथा 11, रयणसार ,आचार्य कुन्दकुन्द, श्री रामचन्द्र स्वाध्याय मन्दिर, अहमदाबाद 1979, 15. दानशीलोपवासार्चाभेदादापि चतुर्विध:17.51 -धर्मामृत, पं. आशाधर, सम्पा. एवं अनु. पं. कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला, संस्कृत ग्रन्थांक 70,भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन. दिल्ली 1944. 16. गृहिणः पंच कर्माणि स्वोन्नतिर्देवपूजनम्। बन्धुसाहाय्यमातिथ्यं पूर्वेषां कीतिरक्षणम्।गृहिण: पंचकर्माणि स्वोन्नतिर्देवपूजनम्ाबन्धुसाहाय्यमातिथ्यं पूर्वेषां कीर्तिरक्षणम्।।-परिच्छेद 5, श्लोक 3 कुरलकाव्य, पं. गोविन्दराज जैन शास्त्री, झाँसी 1953 ,। 17. चारित्रसार, चामुण्डराय, माणेक चन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला,मुम्बई17, 43.1 18. मनुस्मृति, 1,86, द्रष्टव्य, दान दिव्य अनुष्ठान, श्रीमती मृदुला त्रिवेदी एवं श्री टी. पी. त्रिवेदी, कल्याण, दानमहिमा- अंक, सं. 1,गीताप्रेस, गोरखपुर, जनवरी 2011, पृ. 230-232, 19. रामचरितमानस, 7.103(ख) द्रष्टव्य, दान दिव्य अनुष्ठान, पृ. 230-232, 20.महाभारत, द्रष्टव्य, वही, 21. कल्याण, द्रष्टव्य, वही, 22. कवि रहीम, कल्याण, द्रष्टव्य, वही,