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________________ सम्पादकीय ग्रीष्म ऋतु की भीषण गर्मी, वार्षिक और प्रतियोगी परीक्षाओं की सरगर्मी, विवाह - समायोजनों की मारामारी आदि से निजात दिलाने वाली वर्षा ऋतु का शीतल समागम आप सबके लिए मंगलमय हो । यह वही काल है जब सतत् पदाति भ्रमण करके स्व-पर कल्याण में संलग्न हमारे अनगारी गुरुजन ( श्रमण - श्रमणी ) अहिंसा की भावना से एक स्थान पर चार मास का वर्षावास करके स्वाध्याय, ग्रन्थ-लेखन तथा ध्यान-साधना को पूरा करते हैं। पार्श्वनाथ विद्यापीठ तो सभी ऋतुओं में अध्ययन, अध्यापन, ग्रन्थ-लेखन आदि कार्यों में संलग्न रहता है। अभी ग्रीष्म ऋतु में (२० +९= २९) विदेशी विद्वानों और छात्रों को जैनविद्या के विविध आयामों में पारंगत कराया जिसका विस्तृत विवरण 'विद्यापीठ के प्राङ्गण में' दिया गया है। विद्यापीठ की शैक्षणिक गतिविधियों तथा भविष्य की योजनाओं को हमारे अध्यक्ष महोदय डॉ० शुगन चन्द जैन ने 'News letter' में रेखाङ्कित किया है। 'इन्टरनेशनल स्कूल फॉर जैन स्टडीज' शीर्षक के अन्तर्गत उन्होंने 'ISJS' की ई० २०११ की गतिविधियों को संक्षेप में बताया है। इस अंक में हिन्दी के सात तथा अंग्रेजी के दो लेख हैं । जिज्ञासा समाधान स्तम्भ के अन्तर्गत 'दक्षिण भारत में जैनधर्म' को रूपायित किया गया है। साहित्य-सत्कार और जैन जगत् आदि स्थायी स्तम्भ पूर्ववत् हैं। हम प्राकृत और अपभ्रंश की सात दिवसीय कक्षायें भी जुलाई (२५-३१) में आयोजित करा रहे हैं तथा बी०ए०, एम०ए० में प्रवेश की प्रक्रिया भी शुरू कर रहे . हैं जिसकी सूचना भी इसी अङ्क में देखें। इस अङ्क का मुख पृष्ठ अनेकान्तवाद/ स्याद्वाद के सिद्धान्त को रूपायित करता है जिसमें छः अन्धे व्यक्ति हाथी के भिन्नभिन्न अवयवों को छूकर भिन्न-भिन्न स्वरूप वाला बतलाते हैं और परस्पर उसके स्वरूप को लेकर विवाद करते हैं तभी एक स्याद्वादी आकर उन्हें अपेक्षाभेद से सही जानकारी देकर हाथी के समग्ररूप को बतलाता है। पैर पकड़ने वाला खम्भा, पूँछ पकड़ने वाला रस्सी, सूंड पकड़ने वाला मोटी वृक्ष - शाखा, कान पकड़ने वाला पंखा, पेट पकड़ने वाला दीवाल तथा दाँत पकड़ने वाला मजबूत पाइप समझता है। यही उनके विवाद का कारण था। इस अङ्क के प्रथम दो आलेख इसी विषय से सम्बन्धित हैं। अगले अङ्क से हम पाठकों की प्रतिक्रियायें भी उनके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे। अन्त में मैं अपने सभी सहयोगियों डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय, डॉ० अशोक कुमार सिंह, डॉ० नवीन कुमार श्रीवास्तव, डॉ० राहुल कुमार सिंह, श्री ओम प्रकाश सिंह, श्री सूरज कुमार मिश्रा आदि का आभार मानता हूँ जिन्होंने इस अंक को यह रूप दिया । सुदर्शन लाल जैन
SR No.525076
Book TitleSramana 2011 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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