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१८ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक २ / अप्रैल-जून-२०११
सन्दर्भ सूची १. जैनधर्म और दर्शन, मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज, पृ० ३१५ २. वही, पृ० ३१५ ३. प्रमाणनयैरधिगमः, तत्त्वार्थसूत्र, १/६ ४. तत्त्वार्थवार्तिक, १/६/४ ५. प्रश्नवसादेकस्मिन् वस्तुन्यविरोधेन विधिप्रतिषेधविकल्पना सप्तभङ्गी,
वही, १/६/५ ६. आप्तमीमांसा तत्त्वदीपिका, पृष्ठ १४३ ७. आप्तमीमांसा, कारिका १४, १५, १६ ८. आप्तमीमांसा तत्त्वदीपिका, पृष्ठ १४४ ९. तत्त्वार्थवार्तिक, १/६/५ १०. घटबुद्धयभिधानप्रवृत्तिलिङ्गः स्वात्मा, यत्र तयोरप्रवृत्तिः स परात्मा घटादिः।
स्वपरात्मोपादानापोहनव्यवस्थापाद्यं हि वस्तुनो वस्तुत्वम्। यदि स्वस्मिन् पटाद्यात्मव्यावृत्ति-विपरणतिर्न स्यात् सर्वात्मना घट इति व्यपदिश्येत। अथ परात्मना व्यावृत्तावपि स्वात्मोपादानविपरिणतिर्न स्यात् खरविषाणवदवस्त्वेव
स्यात्। वही, १/६/५ ११. वही, १/६/५ (पृष्ठ ९०) १२. वही, १/६/५ ( पृष्ठ ९०-९१) १३. वही, १/६/५ ( पृष्ठ ९१) १४. वही, १/६/५ ( पृष्ठ ९१) १५. वही, १/६/५ ( पृष्ठ ९२) १६. वही, १/६/५ ( पृष्ठ ९२) १७. वही, १/६/५ ( पृष्ठ ९३) १८. वही, १/६/५ ( पृष्ठ ९३) १९. वही, १/६/५ ( पृष्ठ ९३-९४)
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