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________________ १०४ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक २ / अप्रैल-जून-२०११ जैन धर्म का इतिहास (हिन्दी तथा अंग्रेजी संस्करण) लेखक- कैलाश चन्द्र जैन (पूर्व अध्यक्ष, प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन), प्रकाशक- डी०के० प्रिन्ट वर्ल्ड (प्रा०) लि०, नई दिल्ली, तीन खण्डों में उपलब्ध, हिन्दी संस्करण के प्रत्येक का मूल्य ५५०/-अंग्रेजी संस्करण के तीनों खण्डों का समग्र मूल्य ३५००/प्रथम खण्ड- यह खण्ड भगवान महावीर के पूर्व का जैन धर्म और उनके जीवन काल से सम्बन्धित है। यह खण्ड पुन: तीन उपखण्डों में विभाजित है जिनके अन्तर्गत १८ अध्याय है। इस प्रथम खण्ड में महावीर के पूर्ववर्ती राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक सभी पक्षों के विचार सम्मिलित है। इसमें भगवान् महावीर के जीवन और उनकी शिक्षाओं का विस्तार से वर्णन उपलब्ध होता है। इसके साथ ही साथ महावीर के समकालीन अन्य जो महापुरुष हुए है उनकी विचारधाराओं के बारे में भी इस खण्ड में विस्तार से चर्चा उपलब्ध है। द्वितीय खण्ड- यह खण्ड जैन धर्म के ऐतिहासिक सर्वेक्षण और प्रसार से सम्बन्धित है। यह खण्ड भी तीन उपखण्डों में विभाजित है जिसके अन्तर्गत १८ अध्याय हैं। पुस्तक के प्रथम उपखण्ड में लेखक ने प्रथम खण्ड का सारांश प्रस्तुत कर पाठकों को द्वितीय खण्ड के लिए भूमिका तैयार कर दी है। इस खण्ड के द्वितीय उपखण्ड में जैन धर्म के ऐतिहासिक सर्वेक्षण और प्रसार पर विस्तृत चर्चा उपलब्ध है, जैसेजैन धर्म का ऐतिहासिक सर्वेक्षण और प्रसार, जैन साधु, राजनीतिज्ञ और श्रावक, जैन धर्म की सांस्कृतिक देन, धार्मिक विभाजन, सामाजिक विभाजन। तृतीय उपखण्ड में मध्यकालीन जैन धर्म की चर्चा विस्तार से प्रस्तुत की गई है। तृतीय खण्ड- यह खण्ड मध्यकालीन जैन धर्म से सम्बन्धित है। यह खण्ड भी तीन उपखण्डों में विभाजित है जिसके अन्तर्गत १८ अध्याय हैं। प्रथम एवं द्वितीय उपखण्ड में पुस्तक के पहले एवं द्वितीय भाग का संक्षिप्त परिचय है। सम्पूर्ण तृतीय उपखण्ड लेखक की स्वतंत्र रचना नहीं है। इसमें कुछ अन्य लेखकों ने भी अपनी ज्ञानराशि को इसमें समाहित किया है। ए०एच० निजामी ने मध्यकालीन जैन धर्म, सुरेन्द्र गोपाल ने मध्ययुग में जैनों का आर्थिक जीवन और मध्यकाल में जैनों का सामाजिक जीवन, श्याम सुन्दर निगम ने मध्यकालीन भारत में जैन धर्म तथा प्रकाश चन्द्र जैन ने उत्तर मध्यकालीन मालवा में जैन धर्म विषय पर अपने विद्वत्तापूर्ण एवं प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर इस खण्ड को उपयोगी एवं संग्रहणीय बनाया है। पुस्तक के अन्त में प्रामाणिक ग्रन्थ सूची, पत्र-पत्रिकाओं तथा रिपोर्ट का प्रस्तुतीकरण है जिससे सुधी पाठकों के मन में कोई शंका का अवकाश नहीं रहता है। 'जैन धर्म का इतिहास' जैसे विषय पर गम्भीर, शोधपरक और प्रामाणिक ग्रन्थ प्रणयन करने के लिए लेखक बधाई का पात्र है। प्रो० सुदर्शन लाल जैन
SR No.525076
Book TitleSramana 2011 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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