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________________ श्रमण, वर्ष६१, अंक ३ जुलाई-सितम्बर २०१० प्राचीन भारत में भूमिदान की परम्परा (जैन भिक्षु विहारों के विशेष सन्दर्भ में) . ___ डॉ. प्रियंका सिंह [डॉ. प्रियंका सिंह ने प्राचीन भारत में भूमिदान की परम्परा की विवेचना जैन विहारों के विशेष सन्दर्भ में की है। उपलब्ध साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक साक्ष्यों पर आधारित अध्ययन में जैन धर्म और उससे सम्बन्धित मुनियों की संख्या में होने वाली वृद्धि के कारण परिस्थितिजन्य परिवर्तन की पृष्ठभूमि में भूमिदान की परम्परा को भली-भाँति रेखांकित किया गया है। उपासकों द्वारा कैसे शून्यागारों से विहार की आवश्यकता को बल दिया तथा उनके रख-रखाव के लिए भूमिदान को अनिवार्य बना दिया इसका भी उल्लेख हुआ है।] प्राचीन काल से ही भारत में भूमिदान को पुण्यकारी कृत्य माना गया है। भूमि को दान में देने की परम्परा का सूत्रपात सीमित रूप में वैदिक काल में ही हो गया था। अथर्ववेद, ऐतरेय ब्राह्मण, आदि ग्रन्थों में भूमिदान-विषयक कतिपय प्रसंगों का उल्लेख यज्ञ में दक्षिणा के सन्दर्भ में प्राप्त होता है किन्तु वेदोत्तर काल में भूमिदान के माध्यम से पुण्य, यश तथा स्वर्गप्राप्ति का विधान प्रस्तुत किया गया जिससे यह प्रथा समाज में पूर्णतया प्रतिष्ठित हो गई तथा इसके प्रचलन में वृद्धि और विविधता भी आयी। धर्मसूत्रों, पुराणों, महाकाव्यों आदि ग्रन्थों में पुण्यप्रद धार्मिक कृत्य के रूप में भूमिदान की महत्ता का विस्तार से उल्लेख है। महाभारत में भूमिदान के माध्यम से कुल, वंश, यशोऽभिवृद्धि तथा पुत्रादि की इच्छापूर्ति बतायी गयी है। भूमिदान व्यवस्था के अन्तर्गत प्रतिगृहीता के रूप में प्राचीन काल में ब्राह्मणों के दो वर्ग विशेष रूप से परिलक्षित होते हैं-पुरोहित एवं आचार्य। धर्म-शास्त्रों में सर्वत्र सच्चरित्रता, विद्वत्ता तथा अपने तपस्यायुक्त साधनापरक जीवनचर्या के कारण प्रतिगृहीता के रूप में इनकी प्रशंसा की गयी है। वैदिक साहित्य, पुराण, महाकाव्य इत्यादि ग्रन्थों में प्रायः पुरोहित, आचार्य एवं ब्राह्मण को ही भूमिदान देने के उल्लेख मिलते हैं किन्तु छठी शताब्दी ई. पू. में जैन एवं बौद्ध * प्रवक्ता, धीरेन्द्र महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सुन्दरपुर, वाराणसी।
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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