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________________ ५८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर-१० का भाव निहित है। इस देवी में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, यम, इन्द्र आदि देवों के तत्त्व और उनकी शक्तियाँ (आयुध) समवेत रूप में विद्यमान हैं, जिसका परिणाम अपराजेय महिषासुर के संहार के रूप में द्रष्टव्य है। इस प्रकार महिषमर्दिनी मूर्तियों के माध्यम से मध्यकालीन चुनौती भरी परिस्थितियों में सामूहिक स्तर पर प्रतिरोध की प्रेरणा दी गई है। देवी के आयुध भी संहार एवं रक्षा भाव के प्रतीक हैं। दूसरी ओर जैन परम्परा में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के पुत्र बाहुबली गोम्मटेश्वर की मूर्तियों के माध्यम से त्याग और साधना के श्रेष्ठतम स्तर की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति हुई है। बादामी, अयहोल (६०० ई.), देवगढ़ (१०वीं१२वीं शती ई.), खजुराहो (१०वीं-११वीं शती ई.), बिल्हरी, दैलवाड़ा (१२वीं-१३वीं शती ई.), एलोरा (९वीं शती ई.), श्रवणबेलगोल (९८३ ई.), कारकल, बेलूर एवं अन्य अनेक स्थलों की बाहुबली की मूर्तियों में तीर्थंकर न होते हुए भी उनके साथ तीर्थंकर मूर्तियों के तत्त्व (सिंहासन, चामरधरी सेवक, प्रभामण्डल, त्रिछत्र और कभी-कभी यक्ष-यक्षी) दिखाये गये हैं। इन तत्त्वों के माध्यम से बाहुबली की प्रतिष्ठा को तीर्थंकरों के समान दर्शाने का प्रयास किया गया है, जो वस्तुत: त्याग और साधना का महत्त्व प्रतिपादित करते हैं और बाहुबली को इन श्रेयस् (तीर्थंकर) के गुणों का प्रतीक बना देते हैं। एकाश्मक पत्थर में बनी ५७ फीट ऊँची श्रवणबेलगोल की बाहुबली की ९८३ ई. की प्रस्तर-मूर्ति वास्तव में त्याग और साधना का राष्ट्रीय प्रतीक ही तो है। देवगढ़ एवं एलोरा के कुछ उदाहरणों में बाहुबली के अग्रज, भरत चक्रवर्ती को भी बाहुबली के चरणों के समीप विनम्र भाव से नमस्कार की मुद्रा में दिखलाया गया है, जो त्याग और साधना के समक्ष राजशक्ति के विनयावनत होने का प्रतीक है। आज भी जैन एवं जैनेतर धर्माचार्यों के आसन के समीप राजनेताओं को अपेक्षाकृत नीचे आसन पर ही विनयावनत देखा जा सकता है। मध्यकाल में पूर्व के प्रतीक मुख्यत: स्थापत्य एवं मूर्तियों से सम्पृक्त होकर ही सन्दर्भ पाते हैं। स्वस्तिक, श्रीवत्स, मत्स्य, कलश, पद्म एवं शंख जैसे प्रतीक जैन तीर्थंकरों- सुपार्श्वनाथ, शीतलनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, पद्मप्रभ एवं नेमिनाथ के लांछनों के रूप में तथा खजुराहो, भुवनेश्वर, कोणार्क, देवगढ़ एवं अन्य स्थलों के मन्दिरों के विभिन्न भागों पर व्यक्त हुए हैं। पद्म, चक्र, त्रिरत्न, त्रिशूल, दर्पण, वज्र, अंकुश, विभिन्न देवताओं के आयुध के
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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