SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पश्चिम भारत के जैनाचार्यों का साहित्यिक अवदान : ३५ में आचार्य वीरसेन ने गुणधर की वन्दना की है, जिसने कसायपाहुड जैसे उत्तम ग्रन्थ का व्याख्यान किया है जेणिह कासायपाहुडमणेयणयमुज्जलं अणंतत्थं । गाहाहि वियरियं तं गुणहरभडारयं वंदे ।। २८ जहाँ तक गुणधर के काल का प्रश्न है, प्राय: सभी विद्वान् उन्हें आचार्य धरसेन के पहले का मानते हैं। इन्हें आचार्य अर्हबलि के समय का माना गया है। नन्दीसंघ की 'प्राकृत पट्टावली' में अर्हद्बलि का समय महावीर निर्वाण ५६५ अर्थात् प्रथम शताब्दी ई.पू. माना गया है। कहा जाता है कि अर्हदबलि के नेतृत्व में एक वृहत् मुनि सम्मेलन हुआ था, जिसमें गुणधर संघ की स्थापना हुई थी। प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री का मानना है कि संघ स्थापना की स्थिति में पहुँचने तक की ख्याति अर्जित करने में गुणधर की परम्परा को कम से कम १०० वर्ष लगे होंगें। अत: गुणधर का समय विक्रम पूर्व प्रथम शताब्दी मानना उचित है।३९ आचार्य धरसेन दिगम्बर परम्परा के आचार्यों में आचार्य धरसेन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनके जन्म स्थान के बारे में ज्ञात नहीं है परन्तु इनका कार्यक्षेत्र वर्तमान गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र था। जैन ग्रन्थों में आचार्य धरसेन को सौराष्ट्र के गृहनगर की चन्द्र गुफा में निवास करने वाला बताया गया है। उज्जिते गिरि सिहरे धरसेणो धरइ वय-समिदिगुत्ती । चंदगुहाई णिवासी भवियह तसु णामहु पय जुयलं ।।११ आचार्य धरसेन जैन दर्शन के प्रकाण्ड ज्ञाता थे। षट्खण्डागम का सम्पूर्ण विषय उनको ज्ञात था। कहा जाता है कि उन्होंने अपना मृत्यु समय निकट जानकर दो मेधावी जैन आचार्यों पुष्पदन्त एवं भूतबलि को षट्खण्डागम का सम्पूर्ण पाठ ग्रहण करा दिया था। इस प्रकार आचार्य धरसेन ने अपने योग्य शिष्यों को सारा ज्ञान प्रदान कर श्रुत की धारा को अविच्छिन्न बनाये रखा। आचार्य धरसेन का समय भी विवादास्पद है। नन्दीसंघ की प्राकृत पट्टावली में अर्हद्बलि, माघनन्दी, धरसेन, पुष्पदन्त एवं भूतबलि का नामोल्लेख है और इन्हें एक दूसरे का उत्तराधिकारी बताया गया है। अहिबल्लि माघनन्दि य धरसेणं पुष्फयंत भूदबली ।। अडवीसं इगवीसं उगणीसं तीस वीस वास पुणो ।।४२
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy