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________________ जैन-विद्या के शोध-अध्ययन तथा शोध केन्द्र :एक समीक्षा : २३ हेतु विचार करना पड़ता है। समाज में मूलग्रन्थ एवं शोध में सहायक ग्रन्थों के प्रकाशन हेतु गीता प्रेस, गोरखपुर के समान एक भी ऐसा संस्थान नहीं है, जो मौलिक ग्रन्थों एवं उनके अनुवादों को प्रकाशित कर सस्ते मूल्य पर बेचे। कुछ साधुओं के प्रवचन या छोटे-मोटे कुछ ग्रन्थ अवश्य ही अल्पमूल्य पर उपलब्ध होते हैं, किन्तु वे शोध के लिए अनुपयुक्त हैं। यह संतोष का विषय है कि कुछ मूल ग्रन्थों का प्रकाशन दिव्य दर्शन ट्रस्ट आदि के द्वारा गुजराती अनुवाद के साथ हुआ है, किन्तु हिन्दीभाषी जनता उनके लाभ से वंचित ही रहती है। प्राय: गुजरात के शोध-छात्र हिन्दी से और अधिकांश हिन्दी भाषी शोधछात्र गजराती से अपरिचित रहते हैं। अत: उन अनुवादों का लाभ भी नहीं उठा पाते हैं। डिग्री प्राप्ति का लक्ष्य होने से शोध-छात्र अधिक श्रम नहीं करना चाहते हैं और उनके मार्गदर्शक भी परिश्रम से बचने हेतु छात्र को गहराई में जाकर तुलना करने या समीक्षा करने हेतु विवश नहीं करते हैं।
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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