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________________ जैन - विद्या के शोध - अध्ययन तथा शोध केन्द्र : एक समीक्षा : १५ इस सूची में कुछ नाम छूटे हो सकते हैं फिर भी यह संख्या पर्याप्त कही जा सकती है। किन्तु इस सूची पर यदि गम्भीरता से विचार करें तो जीवन्त क्रियाशील शोध संस्थानों की संख्या दस से अधिक नहीं होगी। इनमें कुछ प्रमुख नाम हैं- पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी; लालभाई दलपतभाई भारतीय विद्या मंदिर, अहमदाबाद; जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं; देव कुमार जैन प्राच्य शोध केन्द्र, आरा; कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर; प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली, प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर, इन्हें शोध कार्य के लिए विश्वविद्यालयों से मान्यता भी प्राप्त है। इनके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश शासन ने जैन विद्यापीठ शोध संस्थान, लखनऊ की तथा कर्नाटक शासन ने जैन अध्ययन संस्थान, श्रवणबेलगोला की स्थापना भी इसी उद्देश्य को लेकर की है। शेष जो शोध केन्द्र के रूप में स्थापित हैं वे या तो कुछ मुनिजनों के या विद्वानों के वैयक्तिक प्रयत्नों के ही परिणाम हैं और वे आज भी मान्यता प्राप्त शोध संस्थान के रूप में अपना स्थान नहीं बना पाए हैं। दूसरे उनके पुस्तकालय एवं अन्य शोध संसाधन भी सीमित हैं। उन शोध केन्द्रों पर कितना कार्य हुआ है या हो रहा है इसकी जानकारी का भी प्रायः अभाव है। विश्वविद्यालयों द्वारा जो मान्यता प्राप्त शोध-केन्द्र हैं उनमें पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, सबसे प्राचीन है और शोधकार्यों तथा शोध ग्रन्थों के प्रकाशन में उसका स्थान अग्रणी रहा है। आर्थिक अभाव से गुजर रही इस संस्था को जीवन्त बनाए रखने की महती आवश्यकता है। यहाँ से कई शोधछात्र Ph.D. उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। अभी-अभी प्रो. सुदर्शनलाल जैन की यहाँ निदेशक के रूप में नियुक्ति हुई है, उनसे हमें आशायें है। यहाँ से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक शोध पत्रिका 'श्रमण' भी प्रगति पर है। इन्साइक्लोपीडिया आदि शोध-ग्रन्थ भी प्रकाशित हो रहे हैं। पार्श्वनाथ विद्यापीठ में म्यूजियम, तथा प्राचीन पाण्डुलिपियों का अच्छा संग्रह है। उसके पश्चात् कालक्रम में स्थापित लालभाई दलपत भाई भारतीय विद्या मंदिर को भी जैन-विद्या के शोध संस्थानों में अग्रणी स्थान प्राप्त रहा है, यद्यपि यहाँ अधिक शोध - विद्यार्थी तो नहीं रहे, किन्तु यहाँ के विद्वानों ने जो शोध कार्य किये हैं वे निश्चय ही महत्त्वपूर्ण रहे हैं। एक समय था जब जैन- विद्या के विश्रुत विद्वानों से मण्डित यह संस्थान श्वेताम्बर जैन समाज एवं गुजरात शासन के सहयोग से सिरमौर बना हुआ था, किन्तु पण्डित दलसुख भाई मालवणिया के अवसान के पश्चात् आज शोध कार्यों की अपेक्षा से उतना सक्रिय प्रतीत नहीं होता है।
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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