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|| विशिष्ट व्यक्तित्व
कालजयी श्री भंवरलाल जी नाहटा' जैन संघ के वयोवृद्ध अग्रणी, लब्धप्रतिष्ठित इतिहासकार, जैन धर्म दर्शन एवं साहित्य के मर्मज्ञ, पुरातत्त्ववेत्ता, बहुभाषाविद्, आशु कवि श्री भंवरलालजी नाहटा का जन्म राजस्थान के बीकानेर शहर के प्रसिद्ध नाहटा परिवार में दानवीर सेठ श्री शंकरदानजी के पुत्र समाजसेवी श्रेष्ठिवर्य श्री भैरुदानजी नाहटा की धर्मपत्नी श्रीमती तीजादेवी की रत्नकुक्षी से दिनांक १९ सितम्बर १९११ को हुआ था। पांचवी कक्षा उत्तीर्ण कर आप चाचा सिद्धान्त महोदधि श्री अगरचंदजी नाहटा के साथ के श्रद्धेय उपाध्याय श्री सुखसागरजी, आचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि जी के सान्निध्य व मार्गदर्शन में पठन-पाठन, लेखन व शोध-कार्यों में समर्पित भाव से जुट गये। १४ वर्ष की अवस्था में सेठ श्री रावतमलजी सुराणा की सुपुत्री जतन कॅवर के साथ आपका विवाह हुआ। छ: फुट के लम्बे-चौड़े, प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी श्री नाहटाजी के चेहरे का तेज प्रथम दृष्टा किसी को भी प्रभावित करने में सक्षम था। ऊँची मारवाड़ी पगड़ी, धोती, कुर्ता, पगरखी का पहनावा जीवन पर्यन्त रखा। व्यापार के कारण राजस्थान देश छोड़ा परन्तु राजस्थानी वेश-भूषा खानपान व भाषा नहीं छोड़ी।
आपने हजारों शोधपूर्ण लेखों का प्रकाशन किया। सैकड़ों ग्रन्थों का लेखन, सम्पादन एवं प्रकाशन किया। 'कुशल निर्देश' मासिक पत्रिका का २२ वर्षों तक सम्पादन किया।
ब्राह्मी, खरोष्ठी, देवनागरी आदि प्राचीन लिपियों; संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, अवहट्टी, राजस्थानी, गुजराती, बंगाली आदि भाषाओं में लेखन एवं अनुवाद किया।
आपके लेख न्यायालयों में साक्षी के रूप में मान्य थे। स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय सहयोग किया। जातिवादी परम्परा से दूर थे। सरस्वती पुत्र नाहटाजी लक्ष्मी पुत्र भी थे। साहित्य व समाज की सेवाओं के लिये अनेकानेक संस्थाओं ने आपका सम्मान कर गौरव की अनुभूति की, जिनमें प्रमुख हैं
१४ दिसम्बर १९८६ में उड़ीसा के राज्यपाल श्री विश्वम्भरनाथ पाण्डेय द्वारा कोलकाता में आयोजित समारोह में अभिनन्दन ग्रन्थ विमोचन। १३ जनवरी १९९१ हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा धनबाद अधिवेशन में “साहित्य वाचस्पति' से सम्मानित। ३० जनवरी १९९९ श्री जिनकान्तिसागरसूरि स्मारक
* नाहटा-परिवार से प्राप्त।