SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण, वर्ष ६०, अंक १/जनवरी-मार्च २००९ बौद्ध साहित्य घटजातक' में कृष्ण-चरित्र का वर्णन आगम साहित्य जो जैन परम्परा के मूल ग्रन्थ हैं उनमें आया है, लेकिन वहाँ वैदिक एवं जैन साहित्य में प्राप्त कृष्ण- स्थानांगसूत्र'२, समवायांगसूत्र'२, ज्ञाताधर्मकथासूत्र", चरित्र से बिल्कुल भिन्न उल्लेख मिलता है। वैदिक एवं जैन अन्तकृत्दशासूत्र'५, प्रश्नव्याकरणसूत्र'६, निरयावलिया व साहित्य में कृष्ण को जहाँ क्रमशः विष्णु का अवतार तथा उत्तराध्ययनसूत्र में कृष्ण-चरित्र के कुछ अंशों का उल्लेख महामानव माना गया है वहीं घटजातक में कृष्ण को वीरपुरुष मिलता है, जैसे- स्थानांगसूत्र में पद्मावती, गौरी, लक्ष्मणा, तो कहा गया है लेकिन साथ ही लुटेरा भी बताया गया है। सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा, गांधारी और रुक्मिणी आदि 'महाउमग्गजातक' में कृष्ण का चरित्र विलासी बताया गया है।९ आठ पटरानियों का उल्लेख मिलता है। समवायांगसूत्र में ५४ जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप ___ महापुरुषों के उल्लेख हैं जिनमें कृष्ण का वर्णन विस्तार से जैन साहित्य को मुख्य रूप से हम तीन भागों में किया गया है। कृष्ण की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए विभाजित करके उनमें वर्णित कृष्ण के स्वरूप को जान सकते कहा गया है - वे अतिबल, महाबल, निरुपक्रम आयुष्य वाले हैं- आगम साहित्य, आगमेतर साहित्य और पौराणिक अनहित, अपराजित, शत्रु का मान मर्दन करने वाले, दयालु, साहित्य। आगम साहित्य से अभिप्राय उन साहित्य से है गुणग्राही, अमत्सर, काय की चपलता से रहित, अक्रोधी तथा जिनकी रचना भगवान् महावीर के गणधरों ने की और उनका रोष-तोष-शोकादि से रहित गम्भीर स्वभाववाले थे। संकलन अंग ग्रन्थों के रूप में विश्रुत हुआ। आगमेतर साहित्य ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र में पाण्डव, कुन्ती, द्रौपदी आदि की चर्चा वे हैं जो जैनागमों की ही विषय और शैली में एक विशेष करते हुए उनसे कृष्ण के सम्बन्धों को विवेचित किया गया पद्धत्ति से लिखे गये हैं। उस पद्धत्ति का नाम है- अनुयोग। है। अन्तकृत्दशा में कृष्ण की रानियों, पुत्रों, पुत्रवधुओं, अनुयोग का अर्थ होता है व्याख्या या विवरण। इस पद्धत्ति के सेनापतियों, समृद्धशाली नगरजनों के दीक्षित होने का उल्लेख प्रणेता आचार्य आर्यरक्षित माने जाते हैं। पौराणिक साहित्य से मिलता है।२१। हमारा अभिप्राय उन साहित्य से है जो कृष्ण स्वरूप का वर्णन आगमेतर साहित्य को दो खण्डों में विभाजित करते हुए करते हैं। कृष्ण के चरित को देखा जा सकता है- प्रथम खण्ड के अन्तर्गत ___जैन परम्परा में कृष्ण को भगवान् अरिष्टनेमि जो २२वें वेसाहित्य आते हैं जो शलाकापुरुषों के चरित को ध्यान में रखकर तीर्थंकर थे, के चचेरे भाई के रूप में विवेचित किया गया है। लिखे गये हैं तथा द्वितीय खण्ड में पुराण साहित्य को रखा जा अतः प्राचीन जैन साहित्य में कृष्ण का उल्लेख मिलना सकता है। आगमेतर साहित्य में भी कृष्ण का वही स्वरूप स्वाभाविक है। लेकिन कृष्ण के स्वरूप का विवेचन करने से दृष्टिगोचर होता है जो आगम ग्रन्थों में मिलता है।आगमेतर साहित्य पूर्व यह स्पष्ट करना आवश्यक प्रतीत होता है कि वैदिक में सबसे प्राचीन संघदासगणि व धर्मदासगणि विरचित परम्परा की भाँति जैन परम्परा में भी कृष्ण को वासुदेव 'वसुदेवहिण्डी', जो महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में निबद्ध है, में कृष्ण कहकर सम्बोधित तो किया गया है, परन्तु दोनों में अन्तर है। के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है। वस्तुत: यह ग्रन्थ उनके पिता वैदिक परम्परा में वसुदेव का पुत्र होने के नाते कृष्ण को वसुदेव के भ्रमण-वृत्तांत पर आधारित है। इस ग्रन्थ में कृष्ण वासुदेव कहा गया है, जबकि जैन परम्परा में प्रयुक्त वासुदेव के साथ-साथ पाण्डवों और कौरवों का भी वृत्तांत प्राप्त होता शब्द एक पदविशेष को इंगित करता है। है। इसके अतिरिक्त आचार्यशीलांकरचित'चउपनमहापरिषचरियं', आचार्यहरिभद्रसरि विरचित 'नेमिनाहचरियं'.मल्लधारी आचार्य किया गया है- उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। वर्तमान में अवसर्पिणी हेचन्द्रसूरिकृत भव-भावना व उपदेशमालाप्रकरण',सोमप्रभसूरि काल चल रहा है। प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में ५४ विरचित कुमारपाल पडिबोह और तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि की महापुरुष होते हैं- २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव,९ रचना 'कण्ह चरित' में कृष्ण का वर्णन मिलता है। कृष्ण चरित वासुदेव। कृष्ण नौवें और अन्तिम वासुदेव हैं। इस दृष्टि से लेखन की परम्परा प्राकृत, संस्कृत, मरुगुर्जर और हिन्दी सभी वैदिक मान्यता और जैन मान्यता में अन्तर है। भाषाओं में समान रूप से देखी जाती है और ऐतिहासिक दृष्टि
SR No.525067
Book TitleSramana 2009 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2009
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy