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८४ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८ २. सोह-गय-वसह मिय पसु मारुद सूरूवहिमंदरिंदु मणी।
खिदि उरगंबर सरिसा परम पय विमग्गया सा। धवला १/१, १,१/गा०
३३/५१. ३. गिहिदत्थे य विहारो विदिओऽगिहिदत्थसंसिदो चेव।
एत्तो तदियविहारो णाणुण्णादो जिणवरेहिं।। मूलाचार, १४८. ४. वही, १५१. ५. वही, १५२. ६. मूलाचार प्रदीप, श्लोक सं० २२२५, २२२६. ७. वही। ८. वही। ९. वही। १०. हवदि व ण हवदि बंधो मदम्हि जीवेऽध कायचे?म्हि। _____बंधो धुवमुवधीदो इदि समण छड्डिया सव्व।। प्रवचनसार, ३/१९. ११. वही, ३/१७. १२. वही, ३/३१. १३. वही, ३/३४. १४. वही, ३/३६. १५. वही, ३/३८. १६. संगहणुग्गहकुसलो सुत्तत्थाविसारओ पहियकित्ती।
किरिआचरणसुजुत्तो गाहुय आदेज्जवयणो य।। वही, १५८. १७. पंचसमिदो तिगुत्तो पंचेंदियसंवुडो जिदकसाओ।
दंसणणाणसमग्गो समणो सो संजदो भणिदो।। प्रवचनसार, ३/४०. १८. जे बीवीसपरीसह सहति सत्तीसएहिं संजुत्ता।
ते होंति वंदणीया कम्मक्खयणिज्जरासाहु।। सूत्रपाहुड, गा० १२. १९. चारित्तसमारूढो अप्पासु परं ण ईहए णाणी। चारित्रपाहुड, ४२. २०. जो संजमेसु सहिओ आरंभपरिग्गहेसु विरओ वि।
सो होई वंदणीओ ससुरासुरमाणुसे लोए।। सूत्रपाहुड, ११. २१. मूलाचार, १६८. २२. वही, १७०.
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