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________________ श्रमण, वर्ष ५९, : ५४ वाले श्रावकों का परिवार के वंशवृक्ष सहित (जैसे - माता - पिता, पुत्र-पुत्रवधु, पौत्रपौत्रवधु, प्रपौत्र आदि) उल्लेख मिलता है।९९ अंक ४/अक्टूबर - T - दिसम्बर २००८ इस प्रकार उपरोक्त अभिलेखीय सूचनाओं के विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि १० वीं शताब्दी ई० से १३वीं शताब्दी ई० के मध्य उत्तरी मध्यप्रदेश के क्षेत्र में जैन धर्म के विकास में कच्छपघात, परवर्ती प्रतीहार तथा यज्वपाल शासकों के अलावा उनके राज्याधिकारियों, श्रेष्ठियों (व्यापारियों), गोष्ठिकों व अन्य जैन श्रावकों ने महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया। इन अभिलेखों के तथ्यों से यह भी ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में जैन धर्म की शिक्षाओं का प्रभाव मुख्यतः व्यवसायिक कार्यों में संलग्न रहने वाले 'वैश्यों' अथवा 'वणिकों' पर पड़ा। सन्दर्भ : १. जर्नल ऑफ दि एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल, जिल्द - XXXI, पृ० ३९३. २. सिंह, ए०के० : ( १९९३-९४), ए कच्छपघात इन्सक्रिप्सन् फ्रॉम ग्वालियर, भारती, जिल्द - XX, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, पृ० ११३ ११६. ३. द्विवेदी, हरिहरनिवास : (वि०सं० २००४), ग्वालियर राज्य के अभिलेख, ग्वालियर, संख्या - ४५, विलिस, माइकेल डी० : (१९९६), इन्सक्रिप्सन्स ऑफ गोपक्षेत्र, लन्दन, पृ० ५. ४. एपिग्रॉफिया इण्डिका : जिल्द - II, नई दिल्ली, पृ० २३२-४०. कॉर्पस इन्सक्रिप्सनम् इण्डिकेरमः, जिल्द - VII, भाग- III, नई दिल्ली, पृ० ५६१-५६८. ५. ६. इण्डियन एण्टिक्वेरी : जिल्द - XV, दिल्ली, पृ० ३३ - ४६. ७. इ०ए० : जिल्द - XV, दिल्ली, पृ० २०१ - २०३. ८. द्विवेदी, हरिहरनिवास: ग्वालियरराज्यके अभिलेख, संख्या - ५८, विलिस, माइकेल डी० : वही, पृ०६. Jain Education International ९. वही, संख्या - ६६, विलिस, माइकेल डी० : वही, पृ० ७. १०. वही, संख्या- ७३, विलिस, माइकेल डी० : वही, पृ० ८. ११. जैन, कस्तूरचन्द्र : (२००१), भारतीय दिगम्बर जैन अभिलेख और तीर्थ परिचय - मध्यप्रदेश, १३वीं शती तक", दिल्ली, पुस्तक में निहित जानकारी के आधार पर। * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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