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________________ ५२ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८ से यहाँ जैन धर्म की सुदृढ़ता का अनुमान लगाया जा सकता है। कुछ महत्त्वपूर्ण जैन अभिलेखों से सम्बन्धित सूचनाएँ इस प्रकार हैं - वि०सं० १०३४ (९७७ ई०) के सिहोनियाँ अर्हत् प्रतिमा लेख' में श्री वज्रदाम का उल्लेख मिलता है। इस वज्रदाम की पहचान ग्वालियर की कच्छपघात शाखा के शासक वज्रदामन के रूप में की जाती है। सम्भवत: इस जैन प्रतिमा की प्रतिष्ठापना वज्रदाम द्वारा करवायी गयी थी। ग्वालियर की कच्छपघात शाखा के ही रत्नपाल नामक शासक के उल्लेखयुक्त ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त खण्डित व तिथि रहित एक शिलालेख का प्रारम्भ 'सिद्धम् चन्द्रप्रभस्य वदनां वुरूह जयत्य' के साथ होता है। इस अभिलेख में पत्थर (शैल) की एक अर्हत् मूर्ति का भी उल्लेख है। सम्भवत: यह अभिलेख जैन धर्म के किसी धार्मिक कृत्य से सम्बन्धित रहा होगा। वि०सं० ११२२ (१०६५ ई०) के पचरई शान्तिनाथ मन्दिर शिलालेख में सीयडोणी-चन्देरी-थूबोन-कदवाहा-पचरई व उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में शासनरत परवर्ती प्रतीहार शाखा के हरिराज, भीम, रणमल (रणपाल) का उल्लेख हुआ है। इस लेख में दो गोष्ठिकों का भी उल्लेख मिलता है। गोष्ठिक प्रबन्ध-समिति का एक सदस्य होता था। ये प्रबन्ध-समितियाँ मन्दिर निर्माण व अन्य धार्मिक कार्यों से सम्बन्धित होती थीं। सम्भवतः परवर्ती प्रतीहार शासक रणपाल के समय पचरई के इस शान्तिनाथ मन्दिर का निर्माण हुआ होगा। वि०सं० ११४५ (१०८८ ई०) के दूबकुण्ड ध्वस्त जैन मन्दिर से प्राप्त शिलालेख में एक जैन मन्दिर के निर्माण में दूबकुण्ड शाखा के कच्छपघात शासक विक्रमसिंह द्वारा सहयोग करने की जानकारी मिलती है। इस लेख में उनके द्वारा जैन मन्दिर की व्यवस्था व पूजन संस्कार के सुचारू रूप से निष्पादन हेतु मन्दिर को जमीन दान देने और प्रजा पर कर लगाने आदि का उल्लेख मिलता है। शिलालेख का प्रारम्भ 'ओं नमो वीतरागाय' तथा जैन तीर्थंकरों ऋषभस्वामी (अर्थात् ऋषभनाथ), शांतिनाथ, चन्द्रप्रभ, जिन (अर्थात् महावीर) वस्तु(श्रु)तदेवी (वाक्-पटुता और विद्या की देवी) की स्तुति से होता है। इस लेख में जैन धर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं व श्रेष्ठियों का परिवार सहित उल्लेख मिलता है। साथ ही कुछ गोष्ठिकों व 'वणिक वंश' का भी उल्लेख आया है। सम्भवतः लेख में उल्लेखित श्रद्धालुओं, श्रेष्ठियों, गोष्ठिकों ने इस जैन मन्दिर के निर्माण में सहयोग किया रहा होगा। वि०सं० १३१९ (१२६२ ई.) के यज्वपाल शासक आसल्लदेव के समय के भीमपुर शिलालेख में उसके एक अधिकारी जैत्रसिंह द्वारा एक जैन मन्दिर निर्माण करवाने का उल्लेख मिलता है। इस अभिलेख का प्रारम्भ आदिदेव (आदिनाथ), पार्श्वप्रभु (पार्श्वनाथ), महावीर आदि तीर्थंकरों तथा शारदा (सरस्वती) व दिगम्बर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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