SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धुतंगनिद्देस में प्रयुक्त अर्थघटन के उपकरण 0. २३ की सांगोपांग विवेचना हुई है। इनमें अर्थघटन के सिद्धान्त के दार्शनिक आधार हैंबुद्ध प्रणीत अष्टांग योग के उत्तरोत्तर अंग । यहाँ बौद्ध योग के क्रमशः विकास की दृष्टि से ही बुद्ध के कथनों की विवेचना की गयी है। यहाँ कथनों के उन्हीं अर्थों को आधार बनाया गया है जो बौद्ध- -साधना के आलोक में स्पष्टतः परिलक्षित होते गये हैं । यद्यपि विसुद्धिमग्ग में त्रिपिटकों में आगत कथनों की पर्यालोचना के क्रम में अर्थघटन के अनेक उपकरणों का प्रयोग किया गया है जिनकी विवेचना इस लघु आलेख में संभव नहीं है। अतः धुतंगों के अर्थ-निरूपण के क्रम में जिन उपकरणों का प्रयोग किया गया है, मात्र उनकी ही संक्षिप्त विवेचना वर्तमान आलेख का उद्देश्य है । बुद्धघोष ने धुतंगनिद्देस के प्रारम्भ में ही अपने अर्थघटन के उपकरणों का उल्लेख निम्नलिखित श्लोक में किया है - अत्थतो लक्खणादीही समादानविधानतो । पभेदतो भेदतो च तस्स तस्सनिसंसतो ।। कुसलत्तिकतो चेव धुतादीनं विभागतो। समासव्यासतो चापि विञ्ञातब्बो विनिच्छयो । । " उपरोक्त श्लोक के विश्लेषणोपरान्त हम अर्थघटन के जिन आठ उपकरणों से परिचित होते हैं, वे हैं - (क) अर्थ, (ख) लक्षण, (ग) समादान (घ) विधान, (ङ) प्रभेद-भेद, (च) कुशलत्रिक (छ) धुत आदि विभाग एवं (ज) संक्षेप और विस्तार । जिस प्रकार औजार की पेटी का प्रत्येक औजार अलग-अलग कार्यों के लिए प्रयुक्त होता है, ठीक उसी प्रकार अर्थघटन के प्रत्येक उपकरण पद के अलग-अलग पक्षों पर प्रकाश डाल कर उसके अर्थ की सम्यक् निष्पत्ति में सहायक होते हैं, यथा- अर्थ उसके अभिधार्थ का सूचक है तो लक्षण उसके गुण का, रस उसके कार्य का तो भेद उसके पारिभाषिक लक्षण का, इत्यादि। इनमें से प्रथम पाँच उपकरणों के आलोक में समस्त तेरहो धुतंगों का पृथक्-पृथक् अर्थविनिश्चयन किया गया है तथा अन्तिम तीन उपकरण धुतंग के शेष अर्थों को प्रकाश में लाते हैं। यहाँ उपरोक्त अर्थघटन के उपकरणों की संक्षिप्त विवेचना की जायगी। (क) अर्थ - किसी भी विषय पर क्रमबद्ध रूप से विचार करने हेतु प्रारम्भ में ही शब्द को परिभाषित करना अपेक्षित है। यहाँ हमारा मुख्य शब्द है- धुतंग। जब तक हम यह नहीं जानते कि यह किस भाव, क्रिया या वस्तु का सूचक है तब तक उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy