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________________ श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००८ धुतंगनिद्देस में प्रयुक्त अर्थघटन के उपकरण श्रीमती सरिता कुमारी* डॉ० अविनाश कुमार श्रीवास्तव * * बौद्ध परम्परा की अतिविशिष्ट रचना 'विसुद्धिमग्गो' ज्ञान का एक स्रोत ही नहीं वरन् श्रुतार्थ पर्यालोचना का एक अप्रतिम ग्रन्थ भी है। इसे आधुनिक शब्दावली में अर्थघटन (Hermeneutic) विधा का शास्त्र भी कह सकते हैं। धुतंगनिद्देस विसुद्धिमग्ग शील खण्ड का दूसरा परिच्छेद है जिसमें भगवान् बुद्ध द्वारा उपदेशित तेरह धुतंगों की विवेचना इसके अर्थ-निरूपण एवं पालन-विधि के आलोक में की गयी है । बुद्ध इन धुतंगों का प्रतिपादन विसुद्धिमग्ग की रचना के सैकड़ों वर्ष पूर्व ही किया था। कोई भी कालपुरुष जब किसी धर्म-दर्शन की स्थापना करता है तो वह अपने उपदेश, अपनी विवेचनाएँ, धर्मसूत्र, नैतिक नियम तथा दार्शनिक स्थापनाएँ काल विशेष, समस्या विशेष, परिप्रेक्ष्य विशेष आदि के आलोक में करता है। उसकी समस्याएँ दो प्रकार की होती हैं - कॉलिक एवं कालातीत । भारतीय परिप्रेक्ष्य में दर्शन का प्रमुख कार्य मानवीय समस्याओं का उन्मूलन है। मनुष्य की प्रमुख समस्या समय (कालचक्र) एवं आवश्यकताओं से मुक्ति है। प्रत्येक काल में इस मूल समस्या की अभिव्यक्ति अलग-अलग रूपों में हुई है। इन समस्त प्रकार की समस्याओं को बुद्ध ने एक नाम दिया है - दुःख, जो विभिन्न काल में विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। इस कारण ही एक प्रौढ़ दर्शन द्वारा काल विशेष, व्यक्ति विशेष या समुदाय विशेष के आलोक में प्रस्तुत किया गया समाधान मात्र उस काल, व्यक्ति या समुदाय की समस्या का ही निराकरण नहीं करता वरन् उन सीमाओं का अतिक्रम कर सार्वभौम होने की क्षमता भी रखता है। जो दार्शनिक चिंतन जितना प्रौढ़ एवं गहन होता है उसकी उपयोगिता एवं प्रासंगिकता उतनी ही सुदीर्घ होती है। किसी भी प्राचीन धर्म एवं दर्शन के अनुयायी उसके उपदेशों का आकार तो ग्रहण कर लेते हैं लेकिन उसके मूल को ग्रहण नहीं कर पाते हैं। परिणामतः वे उस दर्शन के मूल स्वरूप एवं उसकी स्थापनाओं के वस्तवर्च (हार्द ) * दर्शनशास्त्र विभाग, श्री सद्गुरु जगजीत सिंह नामधारी कॉलेज, गढ़वा, झारखण्ड * * उपाचार्य एवं अध्यक्ष, दर्शन विभाग, नालन्दा कॉलेज, बिहारशरीफ, नालन्दा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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