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गाहा :
थूल- अंसुय पवाहं ।
तत्तो सुरेण भणिया मुंचंती भद्दे ! वसुमइ ! इण्हिं को तुह हियस्स उच्छाहो ? ।। २३६ । । संस्कृत छाया :
ततः सुरेण भणिता मुञ्चन्ती स्थूलाश्रुप्रवाहम् ।
भद्रे ! वसुमति ! इदानीं कस्तव हृदयस्योत्साहः? ।।२३६।। गुजराती अर्थ :- त्यार पछी मोटा-मोटा अश्रु प्रवाहने छोड़ती वसुमती ने देवे कहयुं । हे भद्रे ! वसुमती ! अत्यारे तारो हृदय नो उत्साह शुं छे? हिन्दी अनुवाद :- बाद में मोटे-मोटे आंसू को बहाती हुई वसुमती से देव ने कहाहे भद्रे ! वसुमती ! अभी तेरे हृदय का उत्साह कैसा है ?
गाहा :
अह तीए वज्जरियं लज्जाए समोणमंत वयणाए । जं किंचि तुमं सामिय ! आइससि तहिं समुच्छाहो । । २३७ ।। संस्कृत छाया :
अथ तया कथितं लज्जया समवनत वदनया ।
यत्किञ्चित् त्वं स्वामिन्! आदिशसि तत्र समुत्साहः ।।२३७।। गुजराती अर्थ :- व्यारे लज्जाथी नमेला मुखवाळी तेणीए कहयुं - हे स्वामिन् ! जे कांई आप आदेश आपशो तेमां मारो उत्साह छे ! हिन्दी अनुवाद :- तब लज्जा से झुके मुखवाली उसने कहा 'हे स्वामिन्! आप जो कुछ आदेश करेंगे उसमें मेरा उत्साह है।'
गाहा :
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भणियं सुरेण सुंदरि ! जइ एवं ता करेसु पव्वज्जं ।
जिण - वर- भणियं - धम्मं कम्म महा- कंद - कोद्दालं ।। २३८ । । संस्कृत छाया :
भणितं सुरेण सुन्दरि ! यद्येवं तर्हि कुरू प्रव्रज्याम् । जिनवरभणितं धर्मं कर्म महाकन्दकुद्दालम् ।।२३८।। गुजराती अर्थ :- त्यारे देवे कहयुं हे सुन्दरि ! जो आ प्रमाणे होय तो तुं जिनेश्वर भगवंते कहेलो अने कर्म रूप मोटा मूल ने उखेळवा माटे कोदाळी समान एवो दीक्षा रूपी धर्म स्वीकार ।
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हिन्दी अनुवाद :- तब देव ने कहा - 'हे सुन्दरि ! यदि ऐसा ही है तो कर्मरूपी महाकंद को निर्मूल करने के लिए जिनेश्वर भगवंत द्वारा कथित सर्वविरति धर्म को स्वीकार कर ।
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