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गाहा :
ता भद्द! जिणाणाए कम्म-समुच्छेयणम्मि उज्जमसु।
तत्तो विलीण-कम्मो पाविहिसि न एरिसं दुक्खं ।। २०८।। संस्कृत छाया :
तस्माद् भद्र! जिनाज्ञया कर्मसमुच्छेदने उद्यच्छ।
ततो विलीनकर्मा प्राप्स्यसि नेदृग् दुःखम् ||२०८।। गुजराती अर्थ :- तेथी हे भद्र! परमात्मानी आज्ञा वड़े कर्मनो नाश करवा माटे, उद्यम कर! जेथी करीने क्षीण थयेला कर्मवाळो तुं आवा दुःखने नहीं पामे। हिन्दी अनुवाद :- अत: हे भद्र! परमात्मा की आज्ञा से कर्मनाश के लिए तू उद्यम कर! और कर्म नष्ट होने से पुनः तुम इस प्रकार के दुःख नहीं पाओगे। गाहा :
इय केवलिणा भणिओ पडिबुद्धो धणबई इमं भणइ ।
इच्छामो अणुसढेि पव्वज्जं देह मे भयवं! ।।२०९।। संस्कृत छाया :
इति केवलीना भणितः प्रतिबुद्धो धनपति-रिदं भणति ।
इच्छामि अनुशास्तिं प्रव्रज्यां देहि मे भगवन् ! ।।२०९।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे केवली भगवंत वड़े प्रेरणा करायेला, बोध पामेला, धनपतिए आ प्रमाणे प्रार्थना कटी, हे भगवन् ! हुं अनुशासन इच्छु छु तेथी मने दीक्षा आपो। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार केवली भगवंत द्वारा बोधित धनपति कहता है हे भगवन् ! मैं अनुशासन चाहता हूँ। अत: मुझे दीक्षा दीजिए। गाहा :
केवलिणा से दिन्ना पव्वज्जा सव्व-पाव-मल-हरणी।
अह जाओ सो समणे सामन्न-गुणेहिं उववेओ।।२१०।। संस्कृत छाया :
केवलीना तस्मै दत्ता प्रव्रज्या सर्वपापमल हरणी।
अथ जातः स श्रमणः श्रामण्यगुणैरूपेतः ||२१०।। गुजराती अर्थ :- केवली भगवंते सर्व पापरूपी मल ने हरनारी प्रव्रज्या तेने आपी, हवे ते श्रमण-पणाना गुणोथी युक्त साधु थयो। हिन्दी अनुवाद :- सर्वपाप के मल को दूर करनेवाली दीक्षा केवली भगवंत ने उसे दी और वह श्रमण गुणोंवाला साधु बना।
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