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________________ गाहा : संभरिया पुव्व-भवा दोन्नि मए मणुय-देव-संबद्धा। जह तं निसुणसु धारिणि! सव्वंपि हु वज्जरिज्जंतं ।।१३३।। संस्कृत छाया : संस्मृतौ पूर्वभवौ द्वौ मया मनुजदेव-सम्बद्धौ। यथा तं नि:शृणु धारिणि! सर्वमपि खलु कथ्यमानम् ||१३३।। गुजराती अर्थ :- त्यारे मने मनुष्यभव तथा देवभवथी संबद्ध पूर्वना बे भव जे प्रमाणे स्मरणमां आव्यां ते सर्व हे धारिणी! हुं कहुं छु ते तुं सांभळ!! हिन्दी अनुवाद :- तब मुझे मनुष्य भव एवं देवभव से सम्बद्ध पूर्व के दो भव जिस तरह स्मरण में आये वह सब मैं कहती हूँ, हे धारिणी! तू सुन! गाहा :- पूर्वभव कथन जंबुद्दीवे दीवे सुरगिरिणो उत्तरम्मि पासम्मि। एरवयं वर-खित्तं इहत्थि तेलोक्क-विक्खायं ।।१३४।। संस्कृत छाया : जम्बुद्वीपे द्वीपे सुरगिरेः उत्तरे पार्थे । ऐरावतं वरक्षेत्रमिहास्ति त्रैलोक्य-विख्यातम् ।।१३४।। गुजराती अर्थ :- जम्बुद्वीप नामना द्वीपमा मेरूगिरिनी उत्तरमांत्रणलोक मां प्रख्यात श्रेष्ठ एवु ऐरावत नामनु क्षेत्र छ। हिन्दी अनुवाद :- जम्बूद्वीप नाम के द्वीप मे मेरुगिरि के उत्तर में तीन लोकों में प्रख्यात, श्रेष्ठ ऐरावत नाम का क्षेत्र है। गाहा:तम्मि य मज्झिम-खंडे आरिय-खित्तम्मि आसि वर-नयरं । अमर-पुर-सरिस-रूवं पडिवक्ख-नरिंद-दुग्गमं ।।१३५।। तिहुअण-लच्छी-निलयं इन्भ-सहस्सोवसेवियं विउलं । आकाल-सुप्पइटुं नामेणवि सुप्पइट्ठति ।। १३६।। संस्कृत छाया :तस्मिंश्च मध्यखण्डे आर्यक्षेत्रे आसीद् वरनगरम् । अमरपुर-सदृग-रूपं प्रतिपक्ष-नरेन्द्रदुर्गमम् ।।१३५।। त्रिभुवनलक्ष्मीनिलयं इभ्यसहस्रोपसेवितं विपुलम् । आकाल-सुप्रतिष्ठं नाम्नाऽपि सुप्रतिष्ठमिति ||१३६|| युग्मम् | गुजराती अर्थ :- ते ऐरावत क्षेत्रना मध्यखण्डमां आर्यक्षेत्रमा शत्रु राजाओना प्रवेश माटे मुश्केल, देव नगर जेवु मनोहर, ऋण भुवननी लक्ष्मी ना घर समान, हजारो श्रेष्ठिओथी सेवायेलु अन्यार सुधी सारी प्रतिष्ठा ने पामेल अने नामथी पण सुप्रतिष्ठ एवं नगर हतुं। 362 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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