SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन इतिहास : अध्ययन विधि एवं मूलस्रोत : ८९ 'हिस्ट्रीओग्राफी' कहा जाता है वह अन्य कुछ नहीं, अपितु ऐतिहासिक तथ्यों की व्याख्या के विभिन्न सिद्धांतों के मूल्यांकन का शास्त्र है। यह मूल्यांकन विभिन्न दृष्टिकोणों पर आधारित होता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि जैनों का अनेकान्त सिद्धान्त ऐतिहासिक मूल्यांकन के क्षेत्र में भी पूर्णतः लागू होता है। हमें उन दृष्टिकोणों या सिद्धान्तों की सापेक्षता को समझना है, जिसके आधार पर ऐतिहासिक मूल्यांकन होते हैं। जब तक ऐतिहासिक मूल्यांकन का हार्द नहीं समझ पायेंगे तब तक ऐतिहासिक मूल्यांकन एवं ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या मात्र किसी एक दृष्टिकोण पर या किसी एक सिद्धान्त पर संभव नहीं है। इतिहास न तो पूर्ण वस्तुनिष्ठ हो सकता है न पूर्ण आत्मनिष्ठ ही। जब भी हमें किसी इतिहास लेखक की किसी घटनाक्रम की व्याख्या का अध्ययन करना होता है तो हमें यह देखना होगा कि उस व्यक्ति का दृष्टिकोण क्या है? वह किन परिवेश और परिस्थितियों में उस व्याख्या को प्रस्तुत कर रहा है। सहवर्ती परम्परा के प्रभाव और तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता यदि हम जैन परम्परा के इतिहास को देखें तो हमें स्पष्ट रूप से यह दिखाई देता है कि किस प्रकार अन्य सहवर्ती धाराओं के प्रभाव से उसके ऐतिहासिक चरित्रों में पौराणिकता या अलौकिकता का प्रवेश होता गया तथा आचार और विचार के क्षेत्र में परिवर्तन आता गया। इसका सबसे अच्छा उदाहरण स्वयं भगवान महावीर का जीवन चरित्र ही है। महावीर के जीवनवृत्त सम्बन्धी सबसे प्राचीन उल्लेख आचारांगसूत्र के प्रथम एवं द्वितीय श्रुतस्कंध में तथा उसके बाद कल्पसूत्र में उपलब्ध होता है। तत्पश्चात् नियुक्ति, भाष्य और चूर्णी साहित्य में उनके जीवन का चित्रण मिलता है। उनके बाद जैन पुराणों और चरित्रकाव्यों में उनके जीवनवृत्त का चित्रण किया गया है। यदि हम उन सभी विवरणों को सामने रखकर तुलनात्मक दृष्टि से उनका अध्ययन करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान महावीर के जीवन में किस प्रकार क्रमशः अलौकिकताओं का प्रवेश होता गया। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध के नौवें अध्ययन में महावीर एक कठोर साधक हैं, जो कठोर जीवनचर्या और साधना के द्वारा अपनी जीवन-यात्रा को आगे बढ़ाते हैं, किन्तु आचारांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध से प्रारम्भ होकर कल्पसूत्र और परवर्ती महावीर चरित्रों में अलौकिकताओं का प्रवेश हो गया। अत: सामान्य रूप से प्राचीन भारतीय इतिहास और विशेष रूप से जैन इतिहास जो हमें पौराणिक ग्रंथों में उपलब्ध होता है, उसके ऐतिहासिक तथ्यों की खोज अत्यन्त सावधानीपूर्वक करनी होगी। यह कहना उचित नहीं है कि समस्त पौराणिक आख्यान ऐतिहासिक न होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy