SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन इतिहास : अध्ययन विधि एवं मूलस्रोत : ८७ भारत के सांस्कृतिक इतिहास को समझने और उसके प्रामाणिक लेखन के लिए एक समग्र किन्तु देशकाल सापेक्ष दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है। ऐतिहासिक अध्ययन के लिए जहाँ एक ओर विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर एक समग्र दृष्टिकोण भी आवश्यक है। भारतीय ऐतिहासिक अध्ययन का यह दुर्भाग्य रहा है कि उसे विभिन्न धर्मों और परम्पराओं के एक घेरे में आबद्ध करके अथवा उसके विभिन्न पक्षों को खण्ड-खण्ड करके देखने का प्रयत्न हुआ है। अपनी आलोचनात्मक और विश्लेषणात्मक दृष्टि के कारण हमने एक-दूसरे की कमियों को ही अधिक देखा है। मात्र यही नहीं, एक परम्परा में दूसरी परम्परा के इतिहास को और उसके जीवन मूल्यों को भ्रान्त रूप से प्रस्तुत किया गया है। भारतीय सांस्कृतिक इतिहास के लेखन में पहली भूल तब हुई, जब दूसरी परम्पराओं को अपनी परम्परा से निम्न दिखाने के लिए, उन्हें गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया। प्रत्येक परम्परा की अगली पीढ़ी दूसरी परम्परा के उस गलत प्रस्तुतीकरण को ही आगे बढ़ाती रही। दूसरे शब्दों में कहे तो भारतीय संस्कृति और विशेष रूप से भारतीय दर्शन में प्रत्येक पक्ष ने दूसरे पक्ष का विकृत चित्रण प्रस्तुत किया। मध्यकालीन दार्शनिक ग्रंथों में इस प्रकार का चित्रण हमें प्रचुरता से उपलब्ध होता है। सौभाग्य या दुर्भाग्य से जब पाश्चात्य इतिहासकार इस देश में आये और यहाँ के इतिहास का अध्ययन किया तो उन्होंने भी अपनी संस्कृति से भारतीय संस्कृति को निम्न सिद्ध करने के लिए विकृत पक्ष को उभार कर इसकी गरिमा को धूमिल ही किया । फिर भी पाश्चात्य लेखकों में कुछ ऐसे अवश्य हुए हैं, जिन्होंने इसको समग्र रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया और एक के ऊपर दूसरी परम्परा के प्रभाव को देखने का भी प्रयास किया। किन्तु उन्होंने अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए भारतीय संस्कृति की एक धारा को दूसरी धारा के विरोध में खड़ा कर दिया और इस प्रकार भारतीय संस्कृति की एकात्मकता को खण्डित किया। यदि हमें भारतीय संस्कृति का प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत करना है तो यह आवश्यक है कि हमारे सांस्कृतिक इतिहास का एक समन्वित और समग्र दृष्टिकोण के आधार पर पुनर्मूल्यांकन हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy