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________________ २२० : श्रमण, वर्ष ५९, अंक २/अप्रैल-जून २००८ प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर (म०प्र०): गौरवपूर्ण उपलब्धियाँ अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त जैन विद्वान् डॉ० सागरमलजी जैन ने भारतीय प्राच्यविद्याओं के शिक्षण,शोध तथा योग एवं ध्यान की परम्पराओं के व्यावहारिक प्रशिक्षण के उद्देश्य से वर्ष १९९७ में प्राच्य विद्यापीठ की स्थापना की, जिसे वर्ष २००० में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म०प्र०) द्वारा शोध-संस्थान के रूप में मान्यता प्रदान की गई। विगत ५० वर्षों से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में जैन-विद्या के क्षेत्र में किए जा रहे उनके सराहनीय योगदान के लिए 'फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएशन्स इन नॉर्थ अमेरिका (यू०एस०ए०) नामक महासंघ द्वारा वर्ष २००६-०७ में डॉ० सागरमलजी जैन को 'जैना प्रेसिडेन्शियल अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसी प्रकार, म०प्र० शासन के संस्कृत बोर्ड द्वारा उन्हें 'वागर्थ सम्मान' से अलंकृत किया गया। डॉ० सागरमलजी जैन के निर्देशन में साध्वी श्री प्रीतिदर्शनाश्रीजी द्वारा 'यशोविजय का अध्यात्मवाद' विषय पर लिखित एवं प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध पर २००६-०७ में जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं द्वारा शोध-उपाधि (पी-एच०डी०) प्रदान की गई। इस प्रकार विद्यापीठ के समृद्ध राजगंगा ग्रन्थागार एवं डॉ० साहब के कुशल निर्देशन में १९९७-२००७ तक की अवधि में कुल १४ शोधार्थियों को विभिन्न विश्वविद्यालयों से पी-एच०डी की उपाधि प्राप्त हो चुकी है। इस दृष्टि से भी प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर की राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त शोध-संस्थान के रूप में अपनी पहचान है। यहाँ सभी जैन सम्प्रदायों के साधु-साध्वी एवं मुमुक्षु डॉ० सागरमल जी जैन के मार्गदर्शन का लाभ लेना चाहते हैं। प्रकाशन के क्षेत्र में भी विद्यापीठ अग्रसर है। वहाँ से अब तक जिन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है उनके नाम हैं १. आचार दिनकर (चार भागों में)- साध्वी मोक्षरत्नाश्री जी २. जैन संस्कार एवं विधि-विधान : एक तुलनात्मक अध्ययन ३. जैन विधि-विधान का बृहद् इतिहास - साध्वी सौम्यगुणा जी ४. जैन धर्म में समत्व-योग की अवधारणा - साध्वी प्रियवन्दनाश्री जी ५. त्रिविध आत्मा की अवधारणा - साध्वी प्रियलता श्री जी ६. उपदेश पुष्पमाला (सात पुष्पिका)- साध्वी सम्यगदर्शनाश्री जी ७. सर्वसिद्धान्तप्रवेशकः - हिन्दी अनुवाद- साध्वी रुचिदर्शनाश्री जी ८.जैन दर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोणडॉ० श्वेता जैन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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