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________________ श्रमण, वर्ष ५९, अंक २ अप्रैल-जून २००८ जैन कथा-साहित्य : एक समीक्षात्मक सर्वेक्षण कथा-साहित्य का उद्भव उतना ही प्राचीन है, जितना इस पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व। चाहे साहित्यिक दृष्टि से कथाओं की रचना कुछ परवर्ती हो, किन्तु कथाकथन की परम्परा तो बहुत पुरानी है। कथा-साहित्य के लिए अंग्रेजी में Narrative literature शब्द प्रचलित है, अत: आख्यान या रूपक के रूप में जो भी कहा जाता है या लिखा जाता है, वह सभी कथा के अन्तर्गत आता है। सामान्य अर्थ में कथा वह है जो कही जाती है। किन्तु जब हम कथा-साहित्य की बात करते हैं, तो उसका तात्पर्य है, किसी व्यक्ति या वस्तु के सम्बन्ध में कथित या लिखित रूप में जो भी हमारे पास है, चाहे वह किसी भी भाषा में हो, कथा के अन्तर्गत आता है। यह सत्य है कि पूर्व में कथाओं को कहने की परम्परा मौखिक रूप में रही है, बाद में उन्हें लिखित रूप दिया गया। दूसरे शब्दों में पूर्व में कथाएँ श्रुत परम्परा से चलती रही हैं, बाद में ही उन्हें लिखित रूप दिया गया है, यह बात जैन कथा-साहित्य के सन्दर्भ में भी सत्य है। जैन परम्परा में भी कथाएँ पहले अनुश्रुति के रूप में ही चलती रही हैं और यही कारण है कि लौकिक परम्पराओं के आधार पर उनमें समय-समय पर संक्षेपण, विस्तारण, परिशोधन, परिवर्तन एवं सम्मिश्रण होता रहा है, उनका स्वरूप तो उस समय स्थिर हुआ होगा, जब उन्हें लिखित स्वरूप प्रदान कर पुस्तकारूढ़ किया गया होगा। मौखिक परम्परा के रूप में इन कथाओं ने समग्र भूण्डल की यात्राएँ की हैं और उनमें विभिन्न धर्मों एवं सामाजिक संस्कृतियों के माध्यम से आंशिक परिवर्तन और परिवर्धन भी हआ है। विभिन्न देशों में प्रचलित कथाओं में भी आंशिक साम्य और आंशिक वैषम्य देखा जाता है, हितोपदेश और ईसप की कथाएँ इसका प्रमाण हैं। जैन कथाओं में भी इन लोक-कथाओं के अनेक आख्यान सम्मिलित हो गये हैं, जैसेशेखचिल्ली की कथा। यहां यह भी ज्ञातव्य है कि इन कथाओं के पात्र देव, मनुष्य और पशु-पक्षी सभी रहे हैं। जहां तक जैन कथाओं का प्रश्न है उनके भी मुख्य पात्र देव, मनुष्य, पशु-पक्षी आदि सभी देखे जाते हैं। जैन कथाओं में जैन लेखकों के द्वारा देवों एवं मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षी ही नहीं, वृक्षों और फूलों को भी रूपक बनाकर कथाओं को प्रस्तुत किया जाता रहा है। आचारांगसूत्र एवं ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र में कछुए की रूपक कथा के साथ-साथ सूत्रकृतांगसूत्र में कमल को भी रूपक बनाकर कथा वर्णित है। लोक परम्परा में प्रेमाख्यान के रूप में हिन्दी में तोता-मैना की कहानियां आज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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