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________________ ९८ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक २ / अप्रैल-जून २००८ (ज) अभिलेख इन साहित्यिक स्त्रोतों के अतिरिक्त अभिलेखीय स्त्रोत भी जैन इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्त्रोत हैं। इनमें परिवर्तन-संशोधन की गुंजाइश कम होने तथा प्रायः समकालीन घटनाओं का उल्लेख होने से उनकी प्रामाणिकता में भी सन्देह का अवसर कम होता है। जैन अभिलेख विभिन्न उपादानों पर उत्कीर्ण मिलते हैं जैसेशिला, स्तम्भ, गुफा, धातु प्रतिमा, स्मारक, शय्यापट्ट, ताम्रपट्ट आदि। ये अभिलेख मुख्यतया दो प्रकार के हैं- १. राजनीतिक और २. धार्मिक। राजनीतिक या शासन पत्रों के रूप में जो अभिलेख हैं वे प्रायः प्रशस्तियों के रूप में हैं जिसमें राजाओं की विरुदावलियाँ, सामरिकविजय, वंश-परिचय आदि होते हैं। धार्मिक अभिलेखों में अनेक जैन जातियों के सामाजिक इतिहास, जैनाचार्यों के संघ, गण, गच्छ आदि से सम्बन्धित उल्लेख होते हैं। जैन अभिलेखों की भाषा प्राकृत, संस्कृत, कन्नड़मिश्रित संस्कृत, कन्नड़, तमिल, गुजराती, पुरानी हिन्दी आदि है। दक्षिण के कुछ लेख तमिल में तथा अधिकांश कन्नड़ मिश्रित संस्कृत में हैं, जिनमें एहोल प्रशस्ति, राष्ट्रकूट गोविन्द का मन्ने से प्राप्त लेख, अमोघवर्ष का कोनर शिलालेख आदि मुख्य हैं। प्राकृत भाषा के अभिलेखों में अजमेर से ३२ मील दूर बारली (बड़ली) नामक स्थान से प्राप्त एक जैन लेख, जो एक पाषाण स्तम्भ पर ४ पंक्तियों में खुदा है, सबसे प्राचीन बताया गया है। इस लेख की लिपि को स्व. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने अशोक से पूर्व का माना है। इस लेख को वीर निर्वाण संवत ८४ का माना जाता है। यद्यपि एक अन्य विद्वान् ने इस अभिलेख का एक अंश उदयपुर संग्रहालय में होने का उल्लेख करते हुए इसे वीर निर्वाण संवत् ५८४ का सिद्ध किया है और इसका सम्बन्ध आर्यरक्षित से जोड़ा है। ई. पू. ३-२ शती से जैन अभिलेख बहुतायत मिलते हैं। मात्र मथुरा से ही लगभग ई.पू. २ शती से लेकर १२वीं शती तक के २०० से भी अधिक अभिलेख मिले हैं। मथुरा से प्राप्त ये अभिलेख प्राकृत, संस्कृत मिश्रित प्राकृत तथा संस्कृत में हैं। इन अभिलेखों का विशेष महत्त्व इसलिए भी है, क्योंकि इनकी पुष्टि कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की स्थविरावलियों से भी होती है। इससे पूर्व कलिंग नरेश खारवेल का उड़ीसा के हाथी गुम्फा से प्राप्त शिलालेख एक ऐसा अभिलेख है जो खारवेल के राजनीतिक क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालने वाला एकमात्र स्त्रोत है। यह अभिलेख न केवल ई.पू. प्रथम-द्वितीय शती के जैन संघ के इतिहास को प्रस्तुत करता है, अपितु खारवेल के राज्यकाल व उसके प्रत्येक वर्ष के कार्यों का भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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