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________________ संस्कृत छाया एवमादि बहुविकल्पं विचिन्तयतस्तद्गत-मनसः । निद्रया समं रात्रिः क्षयं गता, उद्गतः सूरः ।। १७८।। गुजराती अर्थ इत्यादि घणा विचाटो ने चिंतवतो तथा तेणीने मनमा राखते छते निद्रा साथे रात्री पूर्ण थई अने सूर्य उग्यो। हिन्दी अनुवाद इत्यादि बहुत विकल्प करते एवं बाला का मन में ध्यान करते हुए निद्रा के साथ रात बीत गई और सूर्योदय भी हो गया। गाहा अह सो पहाय-समए विहिणा वंदित्तु जिण-वरं पढमं । चलिओ कन्ना कुल-हर-वियाणणत्यं पुराभिमुहो ।।१७९।। संस्कृत छाया चित्रगति नु प्रयाण अथ स प्रभातसमये विधिना वन्दित्वा जिनवरं प्रथमम् । चलितः कन्याकुलगृह-विज्ञानार्थ पुराभिमुखः ।। १७९।। गुजराती अर्थ हवे ते प्रातः समये प्रथम जिनेश्वरने वन्दन करीने कन्याना पितृगृहने जाणवा माटे नगर तरफ चाल्यो। हिन्दी अनुवाद अब प्रात: समय आदिनाथ प्रभु की वन्दना करके कन्या के पिता के घर को जानने के लिए नगर की ओर चला। गाहा पत्तो य पुरं पिच्छइ जण-रहियं सुन्न-सयल-धवल-हरं । पुर-लच्छि-विष्णमुक्कं उव्वसियं अडवि-पडिरूवं ।। १८० ।। संस्कृत छाया प्राप्तश्च पुरं पश्यति, जनरहितं शून्य-सकल-धवलगृहम् । पुरलक्ष्मी-विप्रमुक्तमुदुषित-मटवी-प्रतिरूपम् ।। १८० ।। 290
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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