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११० : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७ को ग्रहण करने वाला 'जो यह पदार्थ इस पदार्थ के होने से ही होता हैं' इत्यादि आकार वाले ज्ञान को ऊह या तर्क प्रतिपादित किया हैं। जैसे- लोक में जितने भी धूम होते हैं वे सभी अग्नि के होने के कारण ही होते हैं, न होने से नहीं। उन सभी बातों को तर्क द्वारा समाविष्ट कर लिया जाता है।
इस प्रकार हम देखते है कि जैनाचार्यों ने तर्क को व्याप्ति का ग्राहक अथवा निश्चायक अंगीकार किया है। प्रत्यक्ष, अनुमान आदि किसी अन्य ज्ञान को वे व्याप्ति ग्राहक नहीं मानते हैं। प्रत्यक्ष द्वारा भूयोदर्शन होने पर भी त्रैकालिक व्याप्ति सम्भव नहीं है, प्रत्यक्ष द्वारा तो तात्कालिक समय में विद्यमान पदार्थों के सम्बन्ध का ज्ञान होता है, भूत एवं भविष्य के पदार्थों की व्याप्ति का ज्ञान 'तर्क' द्वारा ही सम्भव है। इस प्रकार जैनाचार्यों ने तर्क को व्याप्ति का ग्राहक प्रतिपादित करने के साथ ही उसे स्वतंत्र प्रमाण के रूप में भी स्वीकार किया है।
भारतीय तर्क-विद्या में व्याप्ति के अनेक भेद-प्रभेद मिलते हैं, परन्तु जैन तार्किकों ने व्याप्ति-भेद के रूप में प्रमुखतया अन्त:व्याप्ति, बहिर्व्याप्ति, साकल्य व्याप्ति, तथोत्पत्ति, अन्यथानुपपति एवं सह-क्रम व्याप्ति को स्वीकार किया है। जैनाचार्यों के अनुसार जब पक्ष में व्याप्य-व्यापक-भाव को नियत रूप से ग्रहण किया जाता है तो उसे अन्तर्व्याप्ति कहते हैं। जैसे- पर्वतो वह्निमान् धूमात् महानसवत्। इस अनुमान में पर्वत में ही धूम और अग्नि की व्याप्ति का ग्रहण करके अनुमान किया जाय तो वह अन्तर्व्याप्ति कहलाती है। जहाँ पर सपक्ष में व्याप्ति का ग्रहण किया जाता है उसे बहिर्व्याप्ति कहते हैं और जहाँ पर पक्ष और सपक्ष दोनों में व्याप्ति गृहीत करके अनुमान किया जाय उसे साकल्य व्याप्ति कहते हैं। व्याप्ति-भेद को स्पष्ट करते हुए वादिदेवसूरि कहते हैं कि 'पक्ष में ही साधन का साध्य के साथ व्याप्ति होना अन्तर्व्याप्ति और पक्ष के बाहर व्याप्ति होना बहिप्ति है। जैसे- वस्तु अनेकान्त रूप है, क्योंकि वह सत् है और यह स्थल अग्निवाला है, क्योंकि धूमवान है, जो धूमवान होता है वह अग्निवाला होता है, जैसे- पाकशाला। वस्तु अनेकान्त रूप होने के कारण सत् है। यहाँ सत्व हेतु की 'अनेकान्तरूप' इस साध्य के साथ व्याप्ति अन्तर्व्याप्ति है, क्योंकि यह पक्ष में ही हो सकती है बाहर नहीं। दूसरे उदाहरण में 'यह स्थल' पक्ष है और 'धूम तथा अग्नि की व्याप्ति' उस स्थान से बाहर सपक्ष (पाकशाला) में बताई गई हैं, अतएव यह बहिर्व्याप्ति है।
___ व्याप्ति के अन्य भेद में माणिक्यनन्दी ने ‘परीक्षामुख' तथा हेमचन्द्र ने 'प्रमाणमीमांसा' में तथोपपत्ति तथा अन्यथानुपपत्ति नाम से व्याप्ति के दो भेदों का उल्लेख किया है।५° साध्य के होने पर ही साधन का होना तथोपपत्ति है और साध्य