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________________ ८६ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १ / जनवरी-मार्च २००७ विशिष्ट तिथियों पर जीव हिंसा बंद करवा दी थी, ऐसा उल्लेख रत्नपुर १४ किरडु (जोधपुर) से उपलब्ध शिलालेखों से ज्ञात होता है। सौराष्टनृपति कुमारपाल द्वारा ग्रहण उपाधि भी विचित्र है, इनके विरुद 'उमापतिवरलवध प्रसाद' अथवा 'पार्वती वर प्रौढ़ प्रसाद' शैवधर्म में इनकी आस्था द्योतक है, किन्तु कहीं-कहीं 'आर्हत' भी कहा गया है। १५ इस प्रकार ये साहित्यिक और पुरातात्त्विक प्रमाण जैन एवं शैव मत की समीपता के द्योतक हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि तंत्रालोक द्वारा उल्लेखित प्राचीन भारत में कोई शैवधर्मांतर्गत 'आर्हत' सम्प्रदाय हो, जो शिव के योगीरूप की अर्चा करता रहा होगा। संदर्भ : १. पंचास्तिकाय, ८, ९, और ११. २. एम० हिरियन्ना, भारतीय दर्शन की रूपरेखा, पृ० - १५८. ३. षडदर्शनसमुच्चय, ४८. ४. षडदर्शनसमुच्चय पर गुणरत्न की टीका, पृ०- ७४. ५. लोढ़ा, कल्याणमल एवं सादानी जयकिशनदास भक्ति- तत्त्व, पृ०- ३५५. ६. सो सिउ संकरू विण्हु सो सो रुद्द वि सो बुद्ध । सो जिणु ईसरु बंभु सो सो अणंतु सो सिद्धु ।। योगसार, १०५. ७. णिम्मलु णिक्कलु सुद्ध जिणु विण्हु बुद्ध सिव संतु । योगसार, ९ ८. णिच्चु णिरंजणु णाणमउ परमाणंद सहाउ । जो हउ सो संतु सिउ तासु मुणिज्जहि भाउ ।। परमात्मप्रकाश, १७ ९. प्रबंधचिंतामणि, पृ० ८५. १०. एपिग्राफिका इंडिका, प्रथम भाग, पृ० १४९. ११. वही, द्वितीय भाग, पृ० ४२२. १२. वही, ९ पृ० ६६. १३. वही, १९ पृ० ७२१. १४. भावनगर इंसक्रिप्सन, पृ० १७२। १५. एपिग्राफिका इंडिका पृ० ५४, कुमारपाल सोलंकी के रत्नपुर अभिलेख, लेख संवत् १२२१.
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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