SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन ज्ञानमीमांसा : प्रमाणनयतत्त्वालोक के विशेष सन्दर्भ में : ६९ अवधिज्ञान- जब मनुष्य के कर्म अंशतः नष्ट हो जाते हैं तब उसमें एक ऐसी शक्ति का संचार होता है जो उसे अत्यन्त दूरस्थ एवं सूक्ष्म पदार्थों का भी सम्यग्ज्ञान प्राप्त करा देता है, परन्तु उसका यह ज्ञान सीमित वस्तुओं से ही सम्बन्धित रहता है। ऐसा ज्ञान 'अवधिज्ञान' कहलाता है। 'अवधि' शब्द प्रायः समय की सीमा का सूचक होता है, परन्तु जैन दर्शन में यह ज्ञान की सीमा या मर्यादा को बताता है जिसके अन्तर्गत न केवल समय की सीमा आती है, बल्कि अन्य मर्यादाएं भी समाविष्ट देखी जाती हैं। उस ज्ञान की सीमा प्रधान तौर पर उसके विषय से स्पष्ट होती है । उमास्वाति ने कहा है- 'रूपिष्ववधे: '१६० अर्थात् अवधिज्ञान की प्रवृत्ति सर्वपर्यायरहित केवल रूपी (मूर्त) द्रव्यों में होती है । ६१ रूपी पदार्थ वे हैं जिनमें रूप, रस, गन्ध एवं स्पर्श होते हैं। अवधिज्ञान की गति अरूपी द्रव्यों तक नहीं है। 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' में अवधिज्ञान को विकलपारमार्थिक प्रत्यक्ष के अन्तर्गत रखा गया है। अवधिज्ञान को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि यह ज्ञान इन्द्रिय एवं मन की सहायता के बिना आत्मा में अवधिज्ञानावरण के क्षयोपशम से प्रकट होता है तथा इसके द्वारा रूपी पदार्थों की विभिन्न पर्यायों का ज्ञान होता है । ६२ अवधिज्ञान के भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय, ये दो भेद हैं। जो अवधिज्ञान जन्म लेते ही प्रकट होता है, वह भवप्रत्यय है। जिसके आविर्भाव के लिए व्रत, नियम आदि अनुष्ठान अपेक्षित नही हैं उस जन्मसिद्ध अवधिज्ञान को भवप्रत्यय कहते हैं। यह सहज ढंग से बिना किसी प्रयास के ही प्राप्त हो जाता है। देवों तथा नारकों को जन्म ग्रहण करते ही अवधिज्ञान प्राप्त हो जाता है, किन्तु मनुष्यादि को अवधिज्ञानं के लिए व्रत, नियमादि का पालन करना पड़ता है। यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है कि जब अवधिज्ञान की प्राप्ति अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम होने पर होती है तो फिर देव और नारकों को बिना अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षय के ज्ञान की प्राप्ति कैसे होता है ? डॉ० मोहनलाल मेहता इसका समाधान करते हुए कहते हैं कि- क्षयोपशम तो सभी के लिए आवश्यक है। अन्तर साधन में है। जो जीव केवल जन्ममात्र से क्षयोपशम कर सकते हैं उनका अवधिज्ञान भवप्रत्यय है । जिन्हें इसके लिए विशेष प्रयत्न करने पड़ते हैं उनका अवधिज्ञान गुणप्रत्यय है। ३ अर्थात् जन्म लेते ही देवों और नारकों के अवधिज्ञानावरण कर्मों का क्षयोपशम हो जाता है। गुणप्रत्यय प्रयत्न पर आधारित अवधिज्ञान है । प्रयत्न करके जो जिस हद तक ज्ञानावरण कर्मों का क्षयोपशम कर पाता है उसे उसी के अनुकूल ज्ञान प्राप्त होता है । गुणप्रत्यय अवधिज्ञान के छ: प्रकार हैं
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy