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________________ ५२ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७ उसके अच्छे-बुरे पर विचार न करना, छोटे को बड़ा समझना, थोड़े को भी अधिक समझना और हिंसा से उत्पन्न घाव पर मरहम और दया की पट्टी लगाने का भाव रखना आदि। लाओत्से ये वचन अहिंसा को पोषित करते हैं। कन्फ्यूसियस धर्म में अहिंसा कन्फ्यूसियस ने विधेयात्मक अहिंसा पर बल दिया है। उन्होंने कहा है- जीवन के प्रवाह में प्यार की बाढ़ ला दो, मैत्री का संचार करो। यदि तुम दान करते हो तो दिल का दान करो, मात्र दानी कहलाने के लिए किसी को कुछ मत दो, बल्कि जिसे तुम कुछ देते हो उसके प्रति हार्दिक सहानुभूति रखो। सब एक-दूसरे को प्यार करो। जो लोग अच्छे होते हैं, वे सबको प्यार करते हैं, दूसरों की अच्छाई को देखते हैं तथा अपनी ही तरह दूसरों का भी उत्थान चाहते हैं।३३ गाँधीवाद में अहिंसा अहिंसा के विषय में ऐसी धारणा बनी हुई है कि इस पर चलना कांटों के मार्ग पर चलना है। लेकिन मानव की इस धारणा को महात्मा गांधी ने निर्मूल कर दिखाया है। यही कारण है कि महात्मा गांधी का नाम आते ही अहिंसा का स्वरूप आंखों के सामने घूमने लगता है। यदि अहिंसा के सैद्धान्तिक पक्ष को 'गांधी' कहें और उसके व्यावहारिक पक्ष को 'महात्मा' तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गांधी के अनुसार अहंत्व पर आधारित जितनी भी मानुषिक क्रियाएँ हैं, वे सभी हिंसा ही हैं, जैसे- स्वार्थ, प्रभुता की भावना, जातिगत विद्वेष, अपने व्यक्तिगत और वर्गगत स्वार्थों का अन्ध साधन, शस्त्र-शक्ति के आधार पर अपनी कामनाओं की संस्तुति, अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का अपहरण आदि। ठीक इसके विपरीत अहंत्व के विनाश की स्थिति अहिंसा है।३४ अहिंसा को परिभाषित करते हुए गांधी जी ने कहा है- अहिंसा ही सत्येश्वर का दर्शन करने का सीधा और छोटा-सा मार्ग दिखाई देता है।३५ अहिंसा सत्य का प्राण है। उसके बिना मनुष्य पश है। अहिंसा प्रचण्डीशास्त्र है। उसमें परम पुरुषार्थ है। वह भीरु से भागती है। वह वीर पुरुष की शोभा है। उसका सर्वस्व है। वह आत्मा का विशेष गुण है।३६ अहिंसा की एक विशेषता यह भी है कि इसकी सहायता बालक, युवा, वृद्ध, स्त्री-पुरुष सब ले सकते हैं। अहिंसा जितना लाभ एक व्यक्ति को प्रदान कर सकती है, उतना ही एक जनसमूह को अथवा एक राष्ट्र को प्रदान कर सकती है। यदि कोई ऐसा समझता है कि यह केवल व्यक्ति के लिए ही लाभकर है तो ऐसा समझना उस व्यक्ति की सर्वथा भूल है।३७ ___ आज राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव त्रस्त है। सारा जगत् विज्ञान एवं भौतिकवाद में जकड़ चुका है। ऐसी स्थिति में विनाश के इस प्रलयंकारी दृश्य को
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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