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________________ ४२ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७ शूद्र श्याम रंग के बताये गये हैं इसी प्रकार 'शतपथब्राह्मण' में देवताओं को भी वर्ण के आधार पर वर्गीकृत किया है जैसे- अग्नि, प्रजापति और वृहस्पति को ब्राह्मण; इन्द्र, वरुण, सोम, रूद्र, पर्यजन्य, यम, मृत्यु व ईशान को क्षत्रिय; वसु, आदित्य, विश्वदेव, मरुत को वैश्य तथा पूषा (पूषण) को शूद्र कहा गया है। फिर भी वैदिक परम्परा में कर्मगत मान्यता की चलन व्यवहार में पहले से ही कम देखी जाती है। श्रमण परम्परा वर्ण-व्यवस्था को बिल्कुल नहीं मानती है। इसमें कर्मगत मान्यता सिद्धान्त तथा व्यवहार दोनों में ही है। यद्यपि इसमें सामाजिक वर्गीकरण जैसी कोई चीज नहीं है। सब लोग अपने-अपने अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं। किसी तरह का कर्मगत या जन्मगत प्रतिबन्ध नहीं है। श्रमण परम्परा क्षत्रिय प्रधान परम्परा है, किन्तु इसमें क्षत्रिय शासन और सुरक्षा नहीं करते जो कि वर्ण-व्यवस्था में मान्य है। ये कृषि, व्यापार या अन्य कर्म करते हुए अपना भरण-पोषण करते हैं। कर्म को प्रधानता देते हुए ‘उत्तराध्ययनसूत्र' १२ में कहा गया है कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्से कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा ।। अर्थात् कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है। 'महावस्तु'१२ में भी कहा गया है Chatvari me bhikshavah varnah katame chatvarah: Kshatriya Brahmana Vaisya Sudrah. इसी प्रकार खुद्दकनिकाय में कहा गया है न जच्चा वसलो होति, न जच्चा होति ब्राह्मणो। कम्मुना वसलो होति, कम्मुना होति ब्राह्मणो ति। न जच्चा ब्राह्मणो होति, न जच्चा होति अब्राह्मणो। कम्मुना ब्राह्मणो होति, कम्मुना होति अब्राह्मणो।। श्रमण परम्परा के द्वारा वर्ण-व्यवस्था का विरोध होते हुए भी ब्राह्मणवादी लोगों ने श्रमण परम्परा के लोगों को वैश्य घोषित कर दिया। जब श्रमण परम्परा के लोग वर्ण-व्यवस्था से अपने को अलग मानते हैं तब उन पर वर्ण-व्यवस्था की मान्यता को लादने का प्रश्न ही नहीं उठता है? फिर भी अल्पसंख्यक होने के कारण
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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