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________________ आगमों में अनगार के प्रकार : परिव्राजक, तापस और आजीवक ... : ३९ ४. उप्पलबेंटिया - कमल की डंटल खाकर रहने वाले। ५. घर सामुदाणिय - प्रत्येक घर से भिक्षा ग्रहण करने वाले। ६. उट्टियसमण - किसी बड़े मिट्टी के बर्तन में बैठकर तप करने वाले। उपर्युक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट होता है कि तत्कालीन समाज में अनेक प्रकार की धार्मिक आम्नाय प्रचलित थीं। लेकिन 'औपपातिक' में जो उद्धरण ब्राह्मण और क्षत्रिय परिव्राजक के सन्दर्भ में वृत्तिकार अभयदेवसूरि ने लिखा है- 'कण्ङ्वादयः षोडश परिव्राजका लोकोऽवसेवा' अर्थात् इन सोलह परिव्राजकों के विषय में लोक से जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। इससे ऐसा लगता है कि वृत्तिकार के समय तक इन परिव्राजकों के विषय में कोई साहित्य उपलब्ध नहीं था या परिव्राजकों की ये परम्पराएँ प्राय: लुप्त हो गयी रही हों। आज भी बहुत-सी परम्पराएँ प्रायः लुप्त हो गयी हैं जिनके विषय में आगे कार्य करने की आवश्यकता है। सन्दर्भ : १. दशवैकालिकचूर्णि, अगस्त्य सिंह, पृ०- ८५. २. वाचंयमो यती साधुरनगार ऋषिमुनिः।। निर्ग्रन्थो भिक्षुरस्य स्वं तपोयोगशमादयः।। अभिधान चिन्तामणि,१७६. ३. आचारांग, २/४१; ४/२० ४. आचारचूला, १/३२ ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति, १/२/१९ ६. ज्ञाताधर्मकथांग, १५/५ ७. औपपातिक, ७६ ८. व्याख्याप्रज्ञप्ति, १/२/९ ९. ज्ञाताधर्मकथांग, १५/५ १०. औपपातिक, ७६
SR No.525060
Book TitleSramana 2007 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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