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________________ ९२ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ २. क्षत्रिय क्षत्रिय के प्रमुख कार्य प्रजा की रक्षा करना, दान देना, यज्ञ करना और कराना, नृत्य, भोगानन्द आदि में आसक्ति रखना था। ब्राह्मण के बाद क्षत्रिय का स्थान माना गया है। ऋग्वेद में क्षत्रिय को 'राजन्य' कहा गया है। इन्हें राज्य की भुजाएं कहा जाता था। वे अध्यापन तथा अध्ययन भी कर सकते थे, परन्तु उनका कार्य चतुर्वर्णों की रक्षा करना था। आचार्य गौतम ने इस वर्ण को तीन वेदों पर आधारित बताया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में क्षत्रिय के प्रमुख कर्मों में अध्ययन, यज्ञ करना, शस्रधारण करना और भूरक्षण की गणना की गयी है।११ क्षत्रियों का कार्य न्याय की स्थापना करना तथा दण्ड देना भी था। ३. वैश्य वैश्य की गणना द्विजाति में की गई है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य इन तीन वर्गों को 'द्विज' कहा गया है। द्विज के लिये यज्ञ करना, वेदाध्ययन करना एवं दान देना कर्तव्य माना गया है।१२ वैश्यों का प्रमुख कार्य अर्थ-व्यवस्था से सम्बन्धित था तथा अन्य वर्गों का भरण-पोषण करना था। वे कृषि कर्म, पशुपालन, व्यापार, उद्योग धन्धे तथा दान आदि में निपुण थे।१३ अपनी उत्पादित आय का कुछ भाग उन्हें कर के रूप में देना पड़ता था। आपात काल में वह अन्य वर्गों के व्यवसाय को अपना सकता था। गाय, ब्राह्मण तथा अपने वर्ण की रक्षा के लिये वह शस्त्र भी धारण कर सकता था।१४ ४. शूद्र शूद्र वर्ण का एक ही काम था कि वह द्विज वर्गों की सेवा करे।१५ महाभारत में भी कहा गया है कि शूद्र की उत्पत्ति भगवान ने सभी की सेवा के लिए की है।१६ परन्तु याज्ञवल्क्य ने बतलाया है कि शुद्र केवल सेवा पर ही निर्भर नहीं थे। अपनी जीविका के लिये शूद्र बढ़ई, चित्रकार पच्चीकार, रंगसाज, नृत्य, गायन, वादन आदि का भी कार्य करते थे।१७ जैनधर्म जन्मना वर्ण व्यवस्था को नहीं मानता है। पद्मचरित में कहा गया है - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में जाति के जो चार भेद कहे गये हैं, अहेतुक हैं। यदि कहा जाय कि वेदवाक्य और अग्नि के संस्कार से दूसरा जन्म होता है तो यह भी ठीक नहीं है। इसके लिए युक्ति यह है कि जहां-जहां जाति भेद देखा जाता है, वहां-वहां शरीर की विशेषता अवश्य पाई जाती है१८ जिस प्रकार कि मनुष्य हाथी, गधा, घोड़ा आदि में पायी जाती है।१९ इसके अतिरिक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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