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________________ आचार्य हरिभद्रसूरि प्रणीत उपदेशपद : एक अध्ययन : २३ १. ब्रह्मदत्त (गाथा ६), २. पुण्यकृत्य की प्राप्ति (८), ३. प्रभाकरचित्रकार (३६२-३६६), ४. कामासक्ति (१४७), ५. माषतुष (१९३) हम देखते हैं कि 'उपदेशपद' एक अनुपम ग्रन्थ है जिसमें कथानकों के माध्यम से सदाचार की प्रेरणा दी गई है। वस्तुत: कथायें जीवन के विभिन्न पहलुओं को अपने में समेटे हुए सहजता के साथ मनोरंजन करती हुई अपूर्व प्रेरणायें प्रदान करती हैं। सैंकड़ों प्रकार के सिद्धान्त जहां कार्यकारी नहीं होते वहां प्रभावपूर्ण कथा या दृष्टान्त व्यक्ति को मार्ग पर लाने के लिए हृदय परिवर्तन में अधिक सहकारी बनते हैं। क्योंकि ऐसी कथाओं में कोई न कोई गहरी संवेदना अवश्य रहती है। डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने इन कथाओं के विषय में लिखा है कि हरिभद्र की कार्य और घटना प्रधान कथाओं में घटनाओं के चमत्कार के साथ पात्रों के कार्यों की विशेषता, आकर्षण और तनाव आदि भी हैं। यों तो ये कथायें कथारस के उद्देश्य से नहीं लिखी गयी हैं। लेखक विषय का उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण करना चाहता है अथवा उपदेश को हृदयंगम कराने के लिए कोई उदाहरण उपस्थित करता है, तो भी कथातत्त्व का समीचीन सन्निवेश है।५० इन लघु कथाओं में जीवन-निर्माण, मनोरंजन, मानसिक क्षुधा की तृप्ति, जीवन और जागतिक सम्बन्धों के विश्लेषण एवं चिरन्तन और युग सत्यों के उद्घाटन की सामग्री प्रचुर रूप में वर्तमान है तथा सामान्य रूप से ये सभी कथायें, दृष्टान्त या उपदेश-कथायें ही हैं।५१ . इस प्रकार उपदेश पद में व्यक्त हरिभद्रसूरि के चिन्तन के महत्त्व को देखते हुए उसके सांगोपांग एवं तुलनात्मक अध्ययन की आज के सन्दर्भ में बहुत आवश्यकता है ताकि उनके विराट व्यक्तित्व और चिन्तन का लाभ सर्वसाधारण को उपलब्ध हो सके। सन्दर्भ १. जाइणिमयहरियाए रइता एते उ धम्मपुत्तेणं । हरिभदायरिएणं भवविरहं इच्छमाणेणं । उपदेशपद १०४० २. (क) तम्हा करेह सम्मं जह विरहो होइ कम्माणं । पंचाशक ९४० (ख) दुक्ख विरहाय भव्वा लभंतु जिण धम्म संबोधि । धर्मसंग्रहणी १३९६ ३. उपदेशपद (उवएसपय) नामक मूल ग्रन्थ का प्रकाशन सन् १९२८ में श्री ऋषभदेव केशरीमल श्वेताम्बर संस्था, रतलाम से पंचाशक, धर्मसंग्रहणी आदि आठ ग्रन्थों के साथ प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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