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________________ १८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ को प्यास लगी अत: पानी पीने के लिए वह गाड़ी से उतरकर गयी। इतने में एक व्यंतरी ने उस पुरुष को देखा और उस पर मुग्ध हो गई। वह व्यन्तरी उस युवा की पत्नी का रूप बनाकर गाड़ी में आकर बैठ गयी। युवक ने उसे अपनी पत्नी समझा और गाड़ी आगे बढ़ा दी। पत्नी पानी पीकर लौटी और देखा कि गाड़ी तो आगे बढ़ गई है तो वह रोने लगी। उसने चिल्लाकर अनेक प्रकार से अपने पति को गाड़ी रोकने के लिए आवाज लगायी। युवक ने गाड़ी रोकी और इन दोनों स्रियों की समान आकृति देखकर उसे महान् आश्चर्य हुआ।२१ औत्पत्तिकी बुद्धि के अन्तर्गत पहेलियों और प्रश्नोत्तरों के रूप में विविध प्रकार के मनोरंजक आख्यान प्रस्तुत किये गये हैं जो भारतीय कथा-साहित्य की दृष्टि से बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। इसके अन्तर्गत कुछ मनोरंजक आख्यान इस प्रकार हैं- किसी रक्तपट (बौद्ध भिक्षु) ने एक क्षल्लुक से पूछा- इस विन्नातट (वेन्यातट) नगर में कितने कौवे हैं? क्षुल्लक ने उत्तर दिया- साठ हजार कौवे हैं। तब भिक्षु ने पुनः प्रश्न किया- यदि साठ हजार से कम या ज्यादा हुए तब? क्षुल्लक ने तुरन्त उत्तर दिया- यदि कम हुए तब यह समझना चाहिए कि कुछ कौवे विदेश चले गये और यदि अधिक हैं तब समझना चाहिए कि बाहर से कुछ और कौवे अतिथि के रूप में आ गये हैं।-- ऐसा उत्तर सुनकर शाक्यपुत्र भिक्षु निरुत्तर हो गया।२३ इस प्रकार एक बार किसी शाक्य भिक्षु ने एक गिरगिट को अपना सिर धुनते हुए देखा। एक क्षल्लुक२४ से वह उपहासपूर्वक बोला- तुम तो सर्वज्ञ पुत्र हो, अत: यह बतलाओ कि यह गिरगिट अपना सिर क्यों धुन रहा है? . उस क्षुल्लक ने तुरन्त उत्तर दिया- शाक्यव्रती! तुम्हें देखकर चिन्ता से आकुल हो यह ऊपर-नीचे देख रहा है। तुम्हारी दाढ़ी-मूंछ देखकर इसे लगता है कि तुम भिक्षु हो, लेकिन जब वह तुम्हारे लम्बे चीवर को देखता है तो तुम इसे भिक्षुणी नजर आते हो। यही कराण है कि यह गिरगिट अपना सिर धुन रहा है। यह सुनकर बेचारा भिक्षु निरुत्तर रह गया। ___उपदेशपद में इसी तरह के और भी मनोरंजक आख्यान दिये गये हैं। 'कच्छप का लक्ष्य २५ तथा 'युवकों से प्रेम'२६ नामक कथायें व्यंग्य प्रधान हैं। विविध आख्यानों के माध्यम से हरिभद्रसूरि ने औत्पत्तिकी आदि चारों प्रकार की बुद्धि की विशेषतायें प्रगट की हैं। बिना देखे, बिना सुने और बिना जाने विषयों को उसी क्षण में अबाधित रूप से ग्रहण करना तथा तत्सम्बन्धी चमत्कारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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