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________________ पुस्तक समीक्षा : २२५ में नव तत्त्वों तथा बन्ध, हेतु आदि के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ के विषय में आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी के यह शब्द "यह समयसार आगमों का भी आगम है, लाखों शास्त्रों का सार है, यह जिनशासन का स्तंभ है, साधकों की कामधेनु है, कल्पवृक्ष है, सर्वथा सार्थक प्रतीत होते हैं। इसकी हर गाथा छठवें - सातवें गुणस्थान में झूलते हुए महामुनि के आत्मानुभव से निकली हुई है। ग्रन्थ के अन्त में ग्यारहवें परिशिष्ट के अन्तर्गत आचार्य अमृतचन्द ने 'आत्मख्याति टीका' के परिशिष्ट के रूप में अनेकान्त, स्याद्वाद, उपाय - उपेय भाव एवं ज्ञानमात्र भाव आदि शक्तियों का वर्णन किया है जो पाठकों के ज्ञानवर्द्धन में सहायक है। विद्वान लेखक डॉ. भारिल्ल इसपर अद्भुत हिन्दी टीका कार्य के लिये बधाई के पात्र हैं। ग्रन्थ की बाहरी साज-सज्जा आकर्षक व मुद्रण स्पष्ट है। ग्रन्थ का नाम - प्रश्नोत्तर, लेखक- मुनिश्री जयानंदविजय जी, प्रकाशक - श्री गुरु रामचन्द प्रकाशन समिति, भीनमाल, राजस्थान, साइजडिमाई पृष्ठ २७१, मूल्य- अज्ञात । प्रस्तुत ग्रन्थ 'प्रश्नोत्तर' जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है इसमें जिज्ञासुओं के प्रश्नों का लेखक द्वारा समाधान किया गया है। ग्रन्थ में कुल १०९२ प्रश्न हैं जो न केवल जैन धर्म के सभी प्रधान व गूढ़ विषयों पर आधारित हैं अपितु आधुनिक युग में भी अनेक ज्वलंत विषयों से सम्बन्धित हैं जिनका उचित समाधान लेखक द्वारा इस ग्रन्थ में दिया गया है। आधुनिक युग में मानव की व्यस्तता ने उसे ग्रन्थों के पठन-पाठन का इतना अवसर नहीं दिया है कि वह अपने मन में उठी जिज्ञासा को शान्त करने के लिये बहुत से ग्रन्थों का सहारा ले । फलत: धर्म विषयक अनेक ऐसे प्रश्न हैं जो हमारे उचित-अनुचित आचरण की मर्यादा को निश्चित करते हैं, किन्तु उनका हमें सम्यक् ज्ञान नहीं होता है। ऐसे में इस ग्रन्थ का स्वाध्याय हमारे लिये निश्चित ही लाभदायी होगा। इस ग्रंथ की विशेषता है कि यह अनेकानेक प्रश्नों का सम्यक् समाधान हमें एक ही पुस्तक के माध्यम से उपलब्ध करा देता है। इस श्लाघनीय कार्य के लिये लेखक अवश्य ही बधाई का पात्र है । ग्रन्थ की बाहरी साज-सज्जा आकर्षक व मुद्रण सत्वर एवं सुन्दर है। डा० शारदा सिंह, पोस्ट डाक्टोरल फेलो, आई०सी०पी० आर० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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