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________________ ८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ महाकवि का कथन है कि उस प्रतापी राजा सातवाहन ने अपने पराक्रम से समस्त संसार को जीत लिया है, पर शत्रुओं ने उसकी पीठ उसी प्रकार नहीं देखी हैं, जिस प्रकार अपने तेज के प्रकाश से संसार को धवलित करने वाले चन्द्रमा का पृष्ठभाग किसी ने नहीं देखा है। यहाँ चन्द्रमा का पृष्ठभाग उपमान है और राजा का पृष्ठभाग उपमेय। इसी प्रकार चन्द्रमा और राजा के तेज में भी उपमानोपमेय-भाव है। इस चारुतापूर्ण उपमान और उपमेय के आयोजन द्वारा महाकवि कोऊहल ने यहाँ राजा की अतिशय पराक्रमशीलता-रूप विरस की ध्वनि का विन्यास किया है। इस उपमा अलंकार से राजा के शौर्य-रूप वस्तु की ध्वनि, अर्थात् अलंकार से वस्तुध्वनि का उदाहरण भी माना जा सकता है। इसमें वाच्यार्थ विवक्षित या वांक्षित होकर अन्यपर, अर्थात् व्यंग्यार्थ का बोधक है। इसके वाच्यार्थ का न तो दूसरे अर्थ का संक्रमण होता है और न सर्वथा तिरस्कार, बल्कि वह विवक्षित रहता है, इसलिए यह अभिधामूलक या विवक्षितान्यपरवाच्यध्वनि का उदाहरण है। ___'लीलावईकहा' में ध्वन्यात्मक, अलंकृत और रसमय वर्णनों का बाहुल्य है। निम्नांकित गाथा में भ्रान्तिमान अलंकार से वस्तुध्वनि की आवर्जकता द्रष्टव्य है: घर-सिर-पसुत्त-कामिणि-कवोल-संकंत-ससि-कला-वलयं। हंसेहि अहिलसिज्जई मुणाल-सद्धालुएहि जहिं।। (गाथा-सं० ६०) यहाँ रससिद्ध कवि ने भवन की छत पर सोई हुई कामिनियों का चित्रण किया है, जिनके कपोलों में प्रतिबिम्बित चन्द्रकला को मृणाल समझकर हंस उसे प्राप्त करना चाहता है यहाँ हंस को चन्द्रकला में मृणाल का भ्रम हो रहा है। अत: भ्रान्तिमान् अलंकार के माध्यम से कवि ने कामिनियों के कपोलों की सौन्दर्यातिशयता-रूप वस्तु संकेतित की है, जो अलंकार से वस्तुध्वनि का उदाहरण है। इसी क्रम में व्यतिरेक अलंकार के माध्यम से वस्तु की ध्वनि का एक और मनोहारी उदाहरण द्रष्टव्य है: जस्स पिय-बंधवेहि व चउवयण-विणिग्गएहि वेएहि। एक्क-वदणारविंदट्ठिएहिं बहु-मण्णिओ। अप्पा ।। (गाथा-सं०२१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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