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________________ संस्कृत छाया : तव सङ्गम-रहिताया एतद् जन्म खलु तावद् व्यतीतम् अन्यभवे पुनः हे स्वामिन् त्वमेव मम वल्लभो भवतु || १७१ ।। गुजराती अर्थ :- आपना सङ्गमथी रहित मारो आ जन्म तो पूर्ण थई गयो छे । परंतु अन्यभवमां तो तमे ज मारा प्रियतम थजो । हिन्दी अनुवाद :- आप का समागम नहीं होने से मेरा यह भव तो पूर्ण हो गया है किन्तु अन्यभव में आप ही मेरे प्रियतम होना । गाहा : अन्नं भणामि सामिय! जइवि हु अइनिठुरं इमं वयणं । तहवि हु तुह आवया वारणत्यमेसो म्ह निब्बंधो । । १७२ ।। संस्कृत छाया : अन्यद् भणामि हे स्वामिन्! यद्यपि खलु अतिनिष्ठुरं इदं वचनम् । तवापद्-वारणार्थं एष मम तथापि खलु गुजराती अर्थ:- हजी पण हे स्वामिन्! बीजा पण अति निष्ठुर वचन कहुं छु तो पण आपनी आपदाने वारवा माटे आ मारो आग्रह छे । हिन्दी अनुवाद :- हे स्वामिन्! और भी अतिनिष्ठुर वचन कहती हूँ फिर भी आपकी आपत्ति वारण के लिए यह मेरा आग्रह है । ५ गाहा : नीसर मह हिययाओ रुद्धे कंठम्मि पासएणहवा । सक्केसि न नीसरिउं सामिय! मह पाण- वल्लहय! ।। १७३ ।। संस्कृत छाया : निस्सर मम हृदयाद् रुद्धे कण्ठे, पाशकेन अथवा | शक्नोषि न निस्सरितुं हे स्वामिन्! मम प्राणवल्लभ ! ।।१७३ || गुजराती अर्थ :- हे! मारा प्राणप्रिय स्वामिन्! मारा हृदयमांथी जल्दी नीकळी जाओ कारण के पाशवड़े कण्ठ संघाये छते निकलवा माटे शक्य नथी! हिन्दी अनुवाद :- हे प्राणप्रिय स्वामिन्! मेरे हृदय से जल्दी निकल जाएं, कि पाश द्वारा कंठ अवरुद्ध होने पर निकलना सम्भव नहीं है। क्यों गाहा : मन्त्रे न किंचि लब्द्धं हय-विहिणा मरण- कारणं अन्नं । मह तेण कारणेणं तुमए सह दंसणं विहियं ।। १७४ ।। Jain Education International निर्बन्धः || १७२ ।। 192 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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