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________________ उमास्वाति एवं उनकी उच्चै गर शाखा का उत्पत्ति स्थल एवं विचरणक्षेत्र तत्त्वार्थसूत्र के प्रणेता उमास्वाति ने तत्त्वार्थभाष्य की अन्तिम प्रशस्ति में अपने को उच्चै गर शाखा का कहा है तथा अपना जन्म-स्थान न्यग्रोधिका बताया है। अत: उच्चैर्नागर शाखा के उत्पत्ति-स्थल एवं उमास्वाति के जन्म-स्थल का अभिज्ञान (पहचान) करना आवश्यक है। उच्चैर्नागर शाखा का उल्लेख न केवल तत्त्वार्थभाष्य में उपलब्ध होता है, अपितु श्वेताम्बर परम्परा में मान्य कल्पसूत्र की स्थविरावली में तथा मथुरा के अभिलेखों में भी उपलब्ध होता है। कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार उच्चै गर शाखा कोटिकगण की एक शाखा थी। मथुरा के २० अभिलेखों में कोटिकगण तथा नौ अभिलेखों में उच्चै गर शाखा का उल्लेख मिलता है। कोटिकगण कोटिवर्ष नगर के निवासी आर्य सुस्थित से निकला था। श्वेताम्बर परम्परा में कोटिकगण की उत्पत्ति का कारण सरिमंत्र का एक करोड़ बार जप करना माना जाता है किन्तु यह बात मात्र अनुश्रुति रूप ही है। कोटिवर्ष की पहचान पुरातत्त्वविदों ने उत्तर बंगाल के फरीदपुर से की है। इसी कोटिकगण के आर्य शान्तिश्रेणिक से उच्चैर्नागर शाखा के निकलने का उल्लेख है। कल्पसूत्र के गण, कुल और शाखाओं का सम्बन्ध व्यक्तियों या स्थानों (नगरों) से रहा है जैसे - वारणगण वारणावर्त से तथा कोटिकगण कोटिवर्ष से सम्बन्धित था, यद्यपि कुछ गण व्यक्तियों से भी सम्बन्धित थे। शाखाओं में कौशम्बिया, कोडम्बानी, चन्द्रनागरी, माध्यमिका, सौराष्ट्रिका, उच्चैर्नागर आदि शाखाएँ मुख्यतया नगरों से सम्बन्धित रही हैं। उमास्वाति की उच्चैर्नागर शाखा का उत्पत्ति स्थल ऊँचेहरा (म.प्र.) यहाँ हम उच्चै गर शाखा के सन्दर्भ में ही चर्चा करेंगे। विचारणीय प्रश्न यह है कि वह उच्चै गर कहाँ स्थित था, जिससे यह शाखा निकली थी। मुनि श्री कल्याणविजय जी और हीरालाल कापड़िया ने कनिंघम को आधार बनाते हुए, इस उच्चैर्नागर शाखा का सम्बन्ध वर्तमान बुलन्द शहर पूर्वनाम वरण से जोड़ने का प्रयत्न किया है। पं. सुखलाल जी ने भी तत्त्वार्थ की 'भूमिका' में इसी का अनुसरण किया है। कनिंघम लिखते हैं कि “वरण या बारण यह नाम हिन्दू इतिहास में अज्ञात है। 'बरण' के चार सिक्के बुलन्दशहर से प्राप्त हुए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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