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________________ एक पुनर्विचार : ४५ राजगृह की समीपवर्ती पावा मगध देश में स्थित है अतः मज्झिमा विशेषण से यह बात सिद्ध होती है कि महावीर के निर्वाण स्थल के रूप में मान्य पावा उस काल के मध्यदेश अर्थात् मल्लों के गणतंत्र में स्थित थी। इस आधार पर कुशीनगर से लगभग २० किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित फाजिलनगर सठियाँव या उसमानपुर वीरभारी के समीपवर्ती क्षेत्र के पावा होने की सम्भावना अधिक समीचीन लगती है क्योंकि उसकी पुष्टि बौद्ध साहित्यिक साक्ष्यों से होती है। भगवान महावीर की निर्वाणभूमि पावा - मध्यदेश में स्थित इस 'पावा' की पहचान करने में भी कठिनाई यह है कि इस सम्बन्ध में विद्वानों में अभी मतैक्य नहीं हो पाया है । खेतान जी आदि कुछ विद्वान वर्तमान पड़रौना के सिद्धवा को पावा मानते हैं, तो कारलाइल प्रभृति कुछ विद्वानों ने फाजिलनगर 'सठियावं' को 'पावा' माना है। श्री ओमप्रकाशलाल श्रीवास्तव ने 'श्रमण' जनवरी - जून २००० में प्रकाशित अपने लेख में एक नया मत प्रस्तुत करते हुए, उसमानपुर के निकटवर्ती वीरभारी नामक टीले को पावा बताया है। अत: चाहे राजगृही के समीपवर्ती पावा को महावीर निर्वाण स्थल नहीं भी माना जाये और मध्यदेश स्थित मल्लों की 'पावा' को ही महावीर की निर्वाण भूमि माना जाये, तो भी उस स्थान का सम्यक् निर्णय करना अभी शेष है। मध्यदेश स्थित मल्लों की राजधानी 'पावा' की पहचान का सबसे महत्त्वपूर्ण साहित्यिक साक्ष्य यह है कि वह भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण स्थल कुशीनगर से ३ गव्यूति की दूरी पर स्थित थी। किन्तु कुशीनगर को केन्द्र मानकर यदि तीन गव्यूति व्यास से वृत्त खींचा जाय तो उसमें चारों दिशाओं के अनेक स्थल आयेंगे। अत: इस आधार पर भी सम्यक् निर्णय पर कैसे पहुँचें ? इस हेतु हमें बुद्ध के अन्तिम यात्रामार्ग के आधार पर निर्णय लेना होगा। अपने जीवन की इस सन्ध्या में बुद्ध किस मार्ग से कुशीनगर से आये थे ? सम्भावनाएँ तीन हो सकती हैं- राजगृह वैशाली मार्ग से, श्रावस्ती के मार्ग से या शाक्य प्रदेश अर्थात् कपिलवस्तु (नेपाल की तराई ) से । यदि वे श्रावस्ती से आ रहे थे तो 'पावा' की खोज कुशीनगर के पश्चिम में करनी होगी। यदि वे शाक्य राज्य से आ रहे थे तो पावा की खोज कुशीनगर के उत्तर में करना होगी किन्तु यदि वे राजगृह या वैशाली से आ रहे थे तो हमें 'पावा' की खोज कुशीनगर के दक्षिण-पूर्व में करनी होगी। पालि साहित्य से जो सूचनाएं हमें प्राप्त हैं उस आधार पर उनकी यह यात्रा राजगृह - वैशाली की ओर से थी, अतः 'पावा' की खोज कुशीनगर के दक्षिण - पूर्व में करना होगी। इस आधार पर पड़रौना के सिद्धवा को 'पावा' मानने की सम्भावना निरस्त हो जाती है, क्योंकि पड़रौना कुशीनगर (वर्तमान कसाया) के ठीक उत्तर में है । यद्यपि भगवान महावीर निर्वाणभूमि 'पावा' नामक भगवतीप्रसाद 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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