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________________ ३८ सालवृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने इसमें बहिया और कठ्ठकरणंसी जैसे शब्दों की ओर ध्यान नहीं दिया है। वर्तमान में श्वेताम्बर परम्परा जिसे महावीर का जन्म स्थल मान रही है वह कच्चे मार्ग से वर्तमान जमुई से ७-८ कि.मी. से अधिक दूर नहीं है। इस मार्ग में ऊलाही नदी को दो-तीन बार पार करते हुए जाना पड़ता है। किन्तु यह मार्ग वस्तुतः मोटर, गाड़ियों आदि के लिए नहीं है। वैसे यदि ' नदी के किनारे-किनारे खेतों में से यात्रा की जाय तो मेरी दृष्टि में यह मार्ग लगभग ७ कि.मी. से अधिक नहीं हैं। लेखक ने स्वयं कच्चे मार्ग से कार से इस क्षेत्र की यात्रा की है। यदि हम जंभियगाम को आधुनिक जमुई ही मानें तो भी यह स्थान वहां से एक पहाड़ को पार करनेपर ७-८ कि.मी. से अधिक नहीं रह जाता है। मेरी दृष्टि में 'बहिया' का अर्थ अति निकट न समझ कर जंभियग्राम का बाह्य क्षेत्र समझना चाहिए। आज भी सामान्य रूप से किसी भी नगर के ८-१० कि.मी. के क्षेत्र को भी उसी नगर का बाह्य भाग माना जाता हैं। यहां यह भी स्मरण रखना चाहिए कि सामान्यतया भगवान महावीर अपने साधनाकाल में किसी भी बड़े नगर के अति निकट नहीं रहते थे। 'कठ्ठकरण' शब्द का जो कृषि भूमि या खेत अर्थ लगाया जाता है वह मेरी दृष्टि में उचित नहीं हैं। 'कठ्ठकरण' का अर्थ जंगल या काष्ट संग्रह करने का क्षेत्र ऐसा होता है, कृषि क्षेत्र नहीं होता । पुनः शामक को सामान्य गृहस्थ या कृषक न मानकर गाथापति कहा गया है । गाथापति सामान्यतया नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति को ही कहा जाता है। वस्तुतः भगवान महावीर केवलज्ञान प्राप्ति के पूर्व शामक गाथापति के वन क्षेत्र में साधना हेतु स्थित थे । अतः महावीर का केवलज्ञान स्थल वस्तुतः ऋजुवालिका नदी के उत्तरी किनारे का शामक गाथापति का वन क्षेत्र ही था न कि कोई खेत । पुनः वहां सालवृक्षों के होने का तात्पर्य भी यही है कि वह सालवृक्षों का वन रहा होगा। अतः महावीर के केवलज्ञान स्थल को जंभिय (वर्तमान जमुई) के ऋजुवालिका नदी के (उलाई ) उत्तरी किनारे का वन क्षेत्र समझना चाहिए। लेखक ने लगभग १५ वर्ष पूर्व जब इस क्षेत्र की यात्रा की थी तब भी यह क्षेत्र तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ वन क्षेत्र ही था। उसके अतिनिकट लेखक को किसी ग्राम आदि की उपस्थिति नहीं मिली। यदि हम 'बहिया' का अर्थ नगर का बाह्य भाग मानें तथा उस स्थल को ऋजुवालिका नदी के उत्तर किनारे पर स्थित वन क्षेत्र के रूप में स्वीकार करें तो भगवान महावीर का केवलज्ञान स्थल वही सिद्ध होता है, जिसे आज श्वेताम्बर समाज महावीर का जन्म स्थल मान रहा हैं । आगम में केवलज्ञान स्थल को जम्भिय ग्राम नगर का बहिर्भाग (बाहिया) कहा गया है। सामान्यतया 'बहिया' या बहिर्भाग का अर्थ निकटस्थ स्थल माना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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