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________________ ३४ वर्धमान महावीर के वैशालिक होने का एक अन्य प्रमाण हमें थेरगाथा की अट्ठकथा (व्याख्या) में मिलता है। थेरगाथा में वर्धमान थेर का उल्लेख है। उसमें कहा गया है कि दान के पुण्य के परिणामस्वरूप वर्धमान देवलोक से च्युत होकर गौतमबुद्ध के जन्म लेने पर वैशाली के लिछवी राजकुल में उत्पन्न होकर प्रव्रज्या ग्रहण की। (इमस्मि बुद्धपादे वेसालियं लिच्छवि राजकुले निब्बत्ति वड्डमानो तिस्स नामं अहोसि -- थेरगाथा अठ्ठकथा नालन्दा संस्करण पृ. १५३)। इस प्रकार यहां उन्हें वैशाली के लिछवी राजकुल में जन्म लेने वाला बताया गया। यद्यपि परम्परागत विद्वानों का यह विचार हो सकता है कि ये वर्धमान बौद्ध परम्परा में दीक्षित कोई अन्य व्यक्ति होंगे, किन्तु हमारा यह स्पष्ट अनुभव है कि जिस प्रकार ऋषिभाषित सभी अर्हतऋषि निर्ग्रन्थ परम्परा के नहीं हैं, उसी प्रकार थेरगाथा में वर्णित सभी स्थविर बौद्ध नहीं हैं। वैशाली के लिछवी राजकुल में उत्पन्न बुद्ध के समकालिक वर्धमान थेर वर्धमान महावीर से भिन्न नहीं माने जा सकते । थेरगाथा की अठ्ठकथा के अनुसार उन्होंने आंतरिक और बाह्य संयोगों को छोड़कर, रूपराग, अरूपराग तथा भवराग को समाप्त करने का उपदेश दिया तथा यह कहा है कि अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों को साक्षीभाव से देखते हुए भवराग और संयोजनों का प्रहाण सम्भव है। क्योंकि उनके ये विचार आचारांग एवं उत्तराध्ययन में भी मिलते हैं। इस उपदेश से यह स्पष्ट हो जाता है कि थेरगाथा में वर्णित वर्धमान थेर अन्य कोई नहीं, अपितु वर्धमान महावीर ही हैं। इस आधार पर भी यह सिद्ध होता है कि महावीर का जन्म वैशाली के लिछवी कुल में हुआ था। महावीर के प्रव्रज्या ग्रहण करने का उल्लेख करते समय यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संवेग (वैराग्य) उत्पन्न होने पर उन्होंने अग्निकर्म का त्याग करके संघ से क्षमायाचना करके कर्म परम्परा को देखकर प्रव्रज्या ग्रहण की। यह समग्र कथन भी जैन (निर्ग्रन्थ) परम्परा के अनुकूल ही है। अत: इससे भी यही सिद्ध होता है कि थेरगाथा के वैशाली के लिछवी कुल में उत्पन्न वर्धमान थेर वर्धमान महावीर ही हैं। इस प्रकार बौद्ध त्रिपिटक साहित्य भी महावीर के जन्मस्थल के रूप में विदेह के अन्तर्गत वैशाली को ही मानते हैं। ___ पाश्चात्य विद्वानों में हर्मनजैकोबी, हार्नले, विसेण्टस्मिथ, मुनिश्री कल्याणविजयजी, डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, ज्योतिप्रसाद जैन, पं. सुखलालजी आदि जैनअजैन सभी विद्वान वैशाली के निकटस्थ कुण्डग्राम को ही महावीर का जन्मस्थल मानते हैं। बौद्धग्रन्थ महावग्ग (ईस्वीपूर्व ५वीं शती) में वैशाली के तीन क्षेत्र माने गये हैं- १. वैशाली, २. कुण्डपुर एवं ३. वाणिज्यग्राम। महावीर का लिछवी राजकुल www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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