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________________ महावीर का श्रावक वर्ग तब और अब एक आत्मविश्लेषण प्रस्तुत आलेख में हमारा प्रतिपाद्य भगवान महावीर की श्रावक संस्था की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समीक्षा करना है। जैन धर्म निवृत्तिपरक धर्म है। संन्यास की अवधारणा निवृत्तिपरक धर्मों का हार्द है। इस आधार पर सामान्यतया यह माना जाता रहा है कि निवृत्तिमार्गी श्रमण परम्परा में गृहस्थ का वह स्थान नहीं रहा, जो कि प्रवृत्तिमार्गी हिन्दू परम्परा में उसे प्राप्त था। प्रवृत्तिमार्गी परम्परा में गृहस्थ आश्रम को सभी आश्रमों का आधार माना गया था। यद्यपि श्रमण परम्परा में संन्यास धर्म की प्रमुखता रही, किन्तु यह समझ लेना भ्रांतिपूर्ण होगा कि उसमें गृहस्थ धर्म उपेक्षित रहा। वे श्रमण परम्पराएँ, जो संघीय व्यवस्था को लेकर विकसित हुईं, उनमें गृहस्थ या उपासक वर्ग को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। भारतीय श्रमण परम्परा में जैन, बौद्ध, आदि ऐसी परम्पराएँ थीं जिन्होंने संघीय साधना को महत्त्व दिया। भगवान महावीर ने अपनी तीर्थ स्थापना में श्रमण, श्रमणी श्रावक और श्राविकारूप चतुर्विध तीर्थ की स्थापना की। भगवान महावीर की परम्परा में ये चारों ही धर्म संघ के प्रमुख स्तम्भ माने जाते हैं। उन्होंने अपनी संघ व्यवस्था में गृहस्थ उपासक एवं उपासिकाओं को स्थान देकर, उनके महत्त्व को स्वीकार किया है। महावीर की संघ व्यवस्था साधना के क्षेत्र में स्त्री वर्ग और गृहस्थ वर्ग दोनों के महत्त्व को स्वीकार करती है। उन्होंने सूत्रकृतांग (२/२/३९) में स्पष्ट रूप से यह कहा था कि अणुव्रत के रूप में अहिंसा का पालन करने वाला गृहस्थ धर्म भी आर्य है और समस्त दुःखों का अन्त करने वाला पूर्णतया सम्यक् और साधु है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है, कि चाहे सामान्य रूप से गृहस्थों की अपेक्षा श्रमण को श्रेष्ठ माना जाए, किन्तु कुछ गृहस्थ ऐसे भी होते हैं जो श्रमणों की अपेक्षा संयम के परिपालन में श्रेष्ठ होते हैं। महावीर के शासन में महत्त्व वेश का नहीं है, आध्यात्मिक निष्ठा का है। आध्यात्मिक विकास के क्षेत्र में श्रेष्ठता और निम्नता का आधार आध्यात्मिक जागरुकता, अप्रमत्तता, अनासक्ति और निराकुलता है। जिसका चित्त निराकुल और शान्त है, जो अपने कर्तव्य पथ पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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