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________________ श्रमण, वर्ष ५६, अंक ३-४ जुलाई-दिसम्बर २००५ ( साहित्य सत्कार - पुस्तक समीक्षा दशवकालिक सार्थ (मूलपंक्ति अर्थ गाथार्थ सहित) : सम्पा० संयोजक पू० मुनिराज श्री पुण्यश्रमण विजय जी एवं पू० मुनिराज श्री प्रशमपूर्ण विजय जी महाराज, प्रकाशक : श्री झालवाडा जैन संघ, झालवाडा, पृ०सं० १९७, प्रथम आवृत्ति वैशाख संवत् २०६१, मूल्य-वाचन, मनन, निदिध्यासन। · दशवैकालिक एक आचार विशिष्ट आगम है। आचार्य शय्यम्भव द्वारा रचित यह आगम ग्रन्थ पैंतालीस आगमों के अन्तर्गत आने वाले चार मूल आगमों में से एक है। साधु जीवन अंगीकार करने के पश्चात् साधु को इस ग्रन्थ का अध्ययन आवश्यक होने से इसे मलग्रन्थ भी कहते हैं। इस मुलग्रन्थ पर महावीर स्वामी के निवार्ण के १७० वर्ष बाद चौदह पूर्वधर भद्रबाहु स्वामी ने नियुक्ति रची थी। उनके अनुसार इसके चौथे अध्ययन को आत्मप्रवाद पूर्व से, पांचवें अध्ययन को कर्मप्रवाद पूर्व से, सातवें अध्ययन को सत्यप्रवाद से और नौंवा अध्ययन प्रत्याख्यान पूर्व से उद्धृत किया गया है। आचार्य भद्रंकर सूरि द्वारा रचित दशवैकालिक सूत्र की प्रस्तावना को आधार बनाकर संकलित इस दशवैकालिक सार्थ की विशेषता यह है कि इसमें मूलपंक्ति का अर्थ देने के बाद गाथा का अर्थ दिया गया है जिससे गाथा पढ़ते ही पाठक को गाथा का सम्पूर्ण आशय समझ में आ जाता है। पुस्तक की भाषा सरल और सुबोधगम्य है। यह पुस्तक निश्चित ही गुजराती पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। डॉ० श्री प्रकाश पाण्डेय नींव का पत्थर, लेखक - पं० रतनचन्द भारिल्ल, पृष्ठ सं० १२८, प्रका० पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर, प्रथम संस्करण २००५, मूल्य - ८.०० रुपए। प्रस्तुत पुस्तक 'नींव का पत्थर' सिद्धहस्त एवं आगमनिष्ठ लेखक पं० रतनचन्द जी भारिल्ल द्वारा रचित एक उपन्यास है। इसमें सवैदिन जात न एक समान, धन्य है वह नारी, वही ढाक के तीन पात, पूर्वाग्रह के झाड़ की जड़ें, मां और सरस्वती मां, वस्तुस्वातन्त्र्य और अहिंसा, राष्ट्रीय स्वतन्त्रता और वस्तु, बहू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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